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________________ =ામ્યા ને ગોર વહતે હમ वाहर आ गए। 15 मिन्ट वातें की। आप को सचित्र भगवान महावीर की प्रतिभेंट की गई। समय कम थ। आप ने चर्तुमास में आने को कहा। इधर महासाध्वी श्री स्वर्णकांता जी महाराज की सेवा में रहने के कारण दर्शन नहीं हो सके। पर छोटी सी मुलाकात ने मुझे आभास दिलाया कि शिव मुनि जी महाराज कितने विनित सरलात्मा हैं। आप के दर्शन से पिटले 25 वर्ष की स्मृतियां हृदय स्तर पर उभर आई। आचार्य श्री शिव मुनि जी अव महान योगी व जैन एकता के प्रतीक हैं। आप की कृपा से श्री जिनेन्द्र गुरुकुल पंचकुला की जमीन हरियाणा सरकार ने वापस की है। आप महान लेखक हैं। वह विभिन्न भाषा के जानकार हैं। 36 गुणों के धारक आचार्य हैं। आप ने चर्तुमास में भव्य समारोह इस पुस्तक का विमोचन करवाया, जो २१वीं शताब्दी की उपलब्धिी थी। यह पुरतक आस्था की गाथा है। आरधा के विना जीवन अधूरा है। व्यक्ति किसी भी कार्य को करना चाहे, तो आरथा चाहिए। व्यक्ति किसी भी कार्य को करना चाहे, तो आरथा के वरावर है। जहां. आस्था नहीं वहां कुछ भी नहीं। इसी आस्था के वश इसी वर्ष में श्री महावीर जी की यात्रा सपरिवार की। जैन धर्म में आरथा को सम्यक् दर्शन कहा गया है। आरथा कोरा ज्ञान ही, यह तो भक्ति है, समर्पण है। आरथा से किया कोई भी कार्य अछूता नहीं रहता। हमें हर समय आस्था रख कर हर कार्य करना चाहिए। यह मैंने अपने जीवन की यात्रा का सार निकाला है। मेरा जीवन आरथा का सफर है। इस जीवन में अनास्था का कोई स्थान नहीं है। यह सफर तीथंकर परम्परा को समर्पित है। 501
SR No.009994
Book TitleAstha ki aur Badhte Kadam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushottam Jain, Ravindar Jain
Publisher26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
Publication Year
Total Pages501
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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