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-आस्था की ओर बढ़ते कदम आप का चर्तुमास मालेरकोटला में था। एक दिन आप स्वध्याय कर रहे थे। आप ने कहा "भैय्या ! साधु तो वन गए। अव करें क्या ? समझ नहीं आता।"
मेरे धर्म भाता रविन्द्र जैन ने कहा “आप जैन धर्म पर पी.एच.डी. कर लीजिए।"
मुनि जी को सुझाव पसंद आ गया। पर युनिवर्सिटी के नियम सख्त थे। जो साधु परम्परा के विपरीत थे। वाईस चांसलर से मिल कर जैन साधु के लिए नियमों में परिवर्तन कराया गया। इस कार्य में प्रसिद्ध वोद्ध विद्वान डा एल.एम जोशी ने महत्वपूर्ण सहयोग दिया। उन्होने यूनिवर्सिटी के नियम ही नहीं बदलवाए, वल्कि उनके निर्देशक वन उन्हें पी. एच.डी. करवाने लगे। यह कार्य ३ वर्ष चला। डा० शिव मुनि पी.एच.डी. करने वाले प्रथम जैन मुनि हैं। इस कारण उनकी संघ में प्रतिष्टा वढ़ी। फिर पूना सम्मेलन के अवसर पर आचार्य श्री आनंद ऋषि जी महाराज ने आप को आचार्य घोषित कर दिया। आचार्य श्री आनंद जी के स्वर्गवारा के बाद आचार्य श्री देवेन्द्र मुनि जी महाराज ने इस पाट को सुशोभित किया । उनके देवलोक के पश्चात अव आप इस गरिमापूर्ण पद पर विराजमान हैं।
. जव सचित्र महावीर जीवन चारित्र प्रकाशित हुआ तो साध्वी श्री स्वर्णकांता जी महाराज की तवीयत
अच्छी नहीं चल रही थी। पर सवसे पहली प्रति उन्हें विधिवत् समर्पित की गई। फिर हम देहली में एक समारोह के सिलसिले में पहुंचे थे। वहीं २५ वर्ष पश्चात् आचार्य श्री शिव मुनि जी महाराज के दर्शन किए थे। मिलते ही आपने पहचान लिया। २५ वर्ष का समय काफी लम्वा था। फिर आप को मोन ध्यान का समय था, जब मैंने एक पर्ची पर दोनों के नाम लिख कर भेजे तो आप सिंहासन छोड़ कर
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