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आस्था की ओर बढ़ते कदम
जैन साहित्य के संदर्भ में उन्होंने अनेकों दिशा निर्देश दिए । शायद मेरी गुरुदेव से अंतिम भेंट थी । उस के कुछ मास वाद ही उन का देव लोक हो गया। वह स्थान उनकी अमर स्मृति है। उन्होंने जैन धर्म में अनेकों जन उपयोगी प्रयोग किए। वह प्रभावक आचार्य थे। मुझे प्रसन्नता है कि वह मुझे सम्यक्त्व प्रदान करने वाली चारित्रात्मा थे। जैन समाज ही नहीं, समरत मानवता उनके आचार्य पद त्याग से हैरान थी । सारा कार्यक्रम टी.वी. के माध्यम से दिखाया गया भारत के चुनाव आयोग के प्रधान श्री टी. एन. शेषण उस समारोह में उपस्थित थे । उन्होंने कहा “संसार के इतिहास में आचार्य तुलसी का नाम स्वर्णीम अक्षरों में दर्ज हो गया है। संसार के लोग पदों के लिए लड़ते हैं पर यह दिव्य पुरूष स्वेछा से त्याग रहा है। आचार्य तुलसी व उनके शिष्य परिवार के मेरे व सारे परिवार पर वहुत उपकार हैं, जिन्हें भुलाना असंभव है ।
सिरियारी तीर्थ :
जैन श्वेताम्बर परम्परा में तेरापंथ संघ का विशेष स्थान है । इस धर्म संघ व उनकी आचार्य परम्परा का मैने वर्णन पहले कर दिया है। तेरापंथ के प्रथम आचार्य श्री भिक्षु जी थे जो सर्व प्रथम स्थानक वासी आचार्य श्री रघुनाथ जी के शिष्य बने । फिर विचार भेद के कारण उन्होंने १३ श्रमणों को लेकर एक संघ का निर्माण किया। इस संघ में नई व्यवस्था को जन्म दिया। सभी साधू, साध्वीयां, श्राविक, श्राविकाएं एवं आचार्य की आज्ञा में रहने की मर्यादा उन्होंने डाली। उनका जीवन क्रान्तिकारी था। उन्होंने राजस्थानी भाषा में प्रभु महावीर के उपदेश जन समूह में फैलाए । उनके जीवन काल में उनका संघ फला फूला ।
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