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-आय की ओर से OEM से आने वाले दर्शनार्थीयों के लिए हर राज्य का अपना भवन है। जहां उसी राज्य के लोगों के ठहरने की व्यवस्था है।
लाडनुं सुजानगढ़ से ११ किलोमीटर की दूरी पर है। जयपूर-सीकर से ११५ किलोमीटर दूर राजमार्ग पर स्थित
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लाडनूं में प्राचीन वडा मन्दिर अपनी वास्तुकला एवं भव्यता के कारण दर्शनीय है। लाडनूं में आचार्य तुलसी के निर्देशन में आगम वाचना का काम सम्पन्न हो चुका है। नगर परकोटे के वाहर सुखसदन, सम्पूर्ण संगमरमर का निर्मित विशाल जिनालय है। रात्रि में कृत्रिम प्रकाश का विशेष आयोजन दर्शनीय है। लाडनूं जंगम तीर्थ है। यह साधू, साध्वीयों के अतिरिक्त परमार्थीक संस्था की वहिनों की पढ़ाई का अच्छा प्रवन्ध है। आचार्य तुलसी ने तेरापंथ संघ को हर मामले में नई दिशा प्रदान की।
लाडनूं में मैने अपने आचार्य तुलसी जी के दर्शन किए। एक वात मैं और अर्ज कर दूं, जव मैं आचार्य श्री से
अंतिम वार मिला तो आचार्य श्री अपना आचार्य पद त्याग
चुके थे। यह पद उन्होंने अपने विद्वान शिष्य आचार्य महाप्रज्ञ __को दे दिया था। जव वह गणपति कहलाते थे। आचार्य तुलसी का सारा जीवन क्रान्तिकारी था। उन्होंने स्वयं ही इस पद का तयाग किया जव कि सारा संसार पदों के पीछे भागता है। यह विडम्वना है कि सारे संसार के लोग पदों के लिए लडते हैं पर आचार्य तुलसी ने लम्वे समय तक तेरापंथ को संसार में अणुव्रत, प्रेक्षा ध्यान व जीवन विज्ञान के माध्यम से नई पहचान देकर नए आयाम प्रदान किए।
जब मैं वहां पहुंचा तो गुरुदेव अपने कमरे में विराजमान थे। उन्होंने मेरे साथ ढेरों बातें की। पंजाव में तेरापंथ समाज की रिथित, अणुव्रत, जैन एकता व पंजावी
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