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आस्था की ओर बढ़ते कदम
का प्रसिद्ध स्थान है। इस मन्दिर के उतर में एक विशाल कुण्ड है जो मंदाकिनी कुंड के नाम से पुकारा जाता है। इस मन्दिर के पास ही पत्थर के तीन विशाल पहाड़ दिखाई देते हैं। इस तीर्थ पर कुल ६ देरासर हैं। यहां का प्रमुख मन्दिर " श्री आदिनाथ प्रभु का दो मंजिला भव्य मन्दिर है। उपर वाली मन्जिल में श्री पार्श्वनाथ जी की चौमुखी प्रतिमा विराजमान है ।
अचलगढ़ की तलहट्टी में प्रभु शान्तिनाथ का • प्राचीन भव्य मन्दिर है। यहां दो धर्मशालाएं हैं। मन्दिर में पुस्तकालय, भोजनालय की उचित व्यवस्था है। यहां की प्रतिमा धर्म के प्रति श्रद्धा उत्पन्न करती है।
अचलगढ़ व देलवाड़ा के मन्दिर जैन धर्म, संस्कृति की अपनी पहचान संसार के सामने प्रस्तुत करते हैं। मेरा परम सौभाग्य है कि इस लम्बी धर्म यात्रा में मुझे इन मन्दिरों में पूजा अर्चना का सौभाग्य मिला। इन तीर्थों के दर्शन से मेरी जैन धर्म के प्रति आस्था को नया वल मिला। मुझे जैन इतिहास के बारे में नई जानकारीयां प्राप्त हुईं। इस कला के वेजोड नमूने देख कर उन शिल्पीयों के चरणों में शीश स्वयं ही झुक जाता है, जिनके कुशल निर्देशन में यह भव्य तीर्थ का निर्माण हुआ। विमलशाह व उनके वंशज वस्तुपाल व तेजपाल जैसे श्रावकों के बारे में इतिहासक जानकारी मिली
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