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વારથા હી વોર હવે દમ प्रकरण - १६ मेरी संक्षिप्त यात्राएं
मैंने जहां जीवन में लम्बी-लम्वी तीर्थ यात्राएं देव गुरू व धर्म की कृपा से सम्पन्न की हैं उसी तरह मैंने छोटी छोटी तीर्थ यात्राएं संलिप्त रूप से सपरिवार सम्पन्न की है। इन यात्राओं में हिन्दु तीथों की यात्रा भी है, कांगडा तीर्थ के मूलनायक भगवान ऋषभदेव की यात्रा की है। इसी जैन तीर्थ यात्रा की कड़ी में मैं इस यात्रा में इन स्थानों की यात्रा का वर्णन करना चाहूंगा। इस यात्रा ने मेरी धर्म श्रद्धा को नया बल. प्रदान किया है। यह सभी तीर्थ उतर प्रदेश में पडते हैं। मैंने इन तीथों में सर्व प्रथम श्री पुरमिताल की यात्रा की। यह तीर्थ प्रयाग राज के नाम से भी पुकारा जाता है। प्रयाग दर्शन :
प्रयाग का प्राचीन नाम जैन ग्रंथों में पुरिमिताल है। कभी यह नगर में प्रभु ऋपभदेव की अयोध्या नगरी का एक वन था। यह क्षेत्र त्रिवेणी संगम के नाम से प्रसिद्ध है। यह ईलाहावाद जिले में पड़ता है। यहां श्वेताम्बर व दिगम्बर दोनों जैन मन्दिर हैं। श्वेताम्बर जैन मन्दिर में मूलनायक भगवान ऋपभदेव हैं : पर दिगम्बर मन्दिर में मूलनायक भगवान ऋपभदेव के साथ साथ पाश्वनाथ की अतिशय पूर्ण प्रतिमा विराजमान है। हिन्दुओं का त्रिवेणी संगम होने के कारण इस तीर्थ पर जन समूह उमड़ा रहता है। यहां गंगा, यमुना व सरस्वती का संगम होता है। यहां एक वट वृक्ष के नीचे प्रभु ऋपभदेव की चरण पादुका है। माना जाता है कि प्रभु ऋषभदेव को यहां केवल्य ज्ञान हुआ था। प्रभु का चतुर्थ कल्याणक यहां हुआ था। प्रभु ऋपभदेव जी दीक्षा कल्याण
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