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-आस्था की ओर बढ़ते कदम रहा था । अव यहां भी मन्दिरों का समूह बन गया है । इसी तरह दिगम्बर जैन मन्दिर में बहुत नये निर्माण हो चुके हैं । यहां गुजराती लोगों ने एक नई १०० कमरों की डीलक्स धनंशाला वनवाई गई है । हम इस स्थल पर दो घण्टे रुके । रात्रि पड़ चुकी थी ।
रात्रि को हम मेरट पहुंचे । करीव ६ वज चुके थे, हम खाना खाने के लिये एक भोजनालय में आये । फिर मेरट को अलविदा कहा । मेरट से मोदीनगर, मोहन नगर, जियावाद होते हुए हम दिल्ली पहुंचे । वहां हम अपने घर प.श्चम विहार दिल्ली में रुके ।
सुवह आचार्य श्री सुशील कुमार जी महाराज के सम्मेलन में भाग लिया । उनके सम्मेलन में सभी धमों के लेग भाग ले रहे थे । इस सम्मेलन की प्रधानगी तत्कालीन उपराष्ट्रपति श्री के. नारायणन ने की थी । इस सम्मेलन में हमारी भगवान महावीर पुस्तक (द्वितीय संस्करण) का विमोचन श्री नारायणन ने किया । यह पहली पुस्तक का दूसरा संस्करण था । हमने विमोचन के पश्चात् यह ग्रन्थ आचार्य श्री के चरण-कमलों में समर्पित किया । यह हमारी कम्पयूटर पर प्रकाशित प्रथम पुस्तक थी । इस अवसर पर हमारी संस्था ने आचार्य श्री सुशील कुमार जी महाराज को सन्मानपूर्वक एक चादर समर्पित की । इस चादर को उपराष्ट्रपति श्री नारायणन ने आचार्य श्री को भेंट किया ।। उपराष्ट्रपति द्वारा एक जैन मुनि का उनके आश्रम में पहला आश्रम पहला समारोह था । यह समारोह काफी रंगारंग धा । सभी वक्ताओं ने आचार्यश्री की राष्ट्र के प्रति सेवाओं को याद किया गया ।
इस समारोह में भाग लेने के पश्चात् हम वापिस घर आ गये । यह हरिद्वार की यात्रा जो मैंने अपने धर्मभ्राता के
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