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સારથા હી વોર વહd o૮મ समयाभाव के कारण हमें हरिद्वार शीघ्र छोड़ना पड़ा । वहां से हम हरिद्वार के वाजार देखने गये । यहां के बाजार नवीनतम व प्राचीन सभ्यता के संगम हैं । हरिद्वार में देखने को बहुत कुछ है । हजारों सन्यासियों के दर्शन करने का अवसर मिलता है, पर सवसे महत्वपूर्ण गंगा का स्नान है । इमने गंगा के श्री वेदान्तानन्द का आश्रम देखा । यहां वभिन्न देवी-देवताओं के अतिरिक्त जैन तीर्थंकरों की प्रतिमाएं है । यहां पहले श्री अभयमुनि नाम के जैन मुनि की थी । हरिद्वार में एक दार्शनिक स्थल भारत माता का मन्दिर है । यहां अनेकों आश्रम में विद्या तथा योग का प्रबन्ध है । यहां गुरुकुल कांगड़ी का वर्णन उल्लेखनीय है, जिसकी स्थापना आर्य समाज के नेता स्वामी श्रद्धानंद जी ने की थी । इस केन्द्र ने देश की स्वतन्त्रता में महत्वपूर्ण योगदान दिया । हरिद्वार से वापसी :
हरिद्वार से हन देहली जाना चाहते थे । जहां आचार्यश्री सुशील कुमार जी महाराज की स्मृति में एक समारोह रख. या । उसी समारोह हमें भाग लेना था । हम मुजफ्फर नगर आये । यहां से हम मीरापुर-गणेशीपुर मार्ग से हम हस्तिनापुर तीर्थ पहुंचे । इस तीर्थ का वर्णन मैंने पिछले प्रकरण में कर दिया है । हम शान को हस्तिनापुर पहुंचे । सबसे पहले हम भगवान शांतिनाथ के मन्दिर में रुके । प्रबंधकों ने हमें उहरने के लिये कहा, पर मैंने अपनी दिल्ली की मजदूरी बताई । प्रभु शांतिनाथ, आदिनाथ, कुंथुनाथ को भूमि को दन्दना की । मन्दिर से निकलकर पारणा स्तूप की तरफ गये । पारणा मन्दिर अव बहुत विकास कर चुका है । यहां नन्दिरों का अच्छा समूह बन गया है । मैंने जव पहली हरितनापुर यात्रा की थी, जव हरितनापुर में जन्वूद्धीप वन में
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