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- વાસ્થા હી વોર વહ ૦૮મ उभरने लगे । मेरे लिये गंगा का स्नान कोई नई बात नहीं थी, परन्तु मैं इसे धर्मभ्राता के साथ यात्रा सम्पन्न करना अपना सौभाग्य समझता था । इसी श्रद्धा आरथा के बंधन में वंधे हम इस तीर्थ पर आ पहुंचे । यह विल्कुल नया अनुभव था । आज तक मैं इस स्थान पर आता रहा हूं । पर अपने धर्मभ्राता से किया लम्बा वायदा अव पूर्ण होने का समय आ चुका था । हरिद्वार की पवित्र भूमि हमें अपनी ओर आकर्षित कर रही थी । कुछ ही समय वाद हम हरिद्वार की ओर घूमे । गंगा की एक धारा सड़क के साथ चल रही थी । यह गंगा की वह भूमि है जहां वहुत सी सभ्यताओं क विकास हुआ । हम ११ वजे के लगभग हरिद्वार पहुंचे । वहां मैंने सर्वप्रथम गंगा किनारे हरि की पौड़ी पर उतरना टीक समझा ।
इस समय गर्मी अपने परम उत्कर्ष पर थी, गंगा की धारा कल-कल करती वह रही थी । यह दृश्य इतना अनुपम था । इस क्षेत्र में प्रकृति प्रवास करती है । अव गंगा की सीढ़ियों को संगमरमर से पक्का कर दिया गया है । वहां नंगे पांव चले । यह फर्श तप रहा था । जल्दी से गंगा की गोद में पहुंचे । जितनी वाहर गर्मी थी उतनी गंगा रीतलता प्रदान कर रही थी । गंगा में हम दोनों ने डुवकी लगाई । मैं यहां एक बात और बता दूं कि मेरे धर्मभ्राता को तैरना नहीं आता । इस कारण वह जल से डरता है । पर मेरे कहने पर उसने मेरे साथ डुवकी लगाई । यह अभूतपूर्व अनुभव मेरे जीवन की महत्वपूर्ण प्राप्ति है । यह गंगा स्नान अपने धर्मभाता को करवा कर मैंने जीवन के वायदे की पूर्ति की । कुछ भी हो मेरे लिये यह स्नान एक अद्भुत अनुभूति छोड़ गया ।
मैंने स्नान के वाद हरिद्वार के प्रसिद्ध मन्दिर देखे ।। फिर मैंने अपने धर्मभ्राता को लक्ष्मण झूला दिखाया ।
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