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=ામ્યા છે ગોર તો રુદ્રા पीछे चार छोटे-छोटे मन्दिर हैं । एक तरह से नन्दीश्वर दीप की स्थापना की गई है, जहां मूर्तियों की भरमार है ।
साथ में समोसरण मन्दिर की विशाल रचना शास्त्र विधि के अनुसार की गई है । चारों तरफ प्रभु की प्रतिमा है । इसके देव-देवियां, तिच, मनुष्य द्वारा भगवान की देशना सुनने का दृश्य जीवन्त ढंग से प्रस्तुत किया गया
साथ के मन्दिर में प्रभु पार्श्वनाथ व अन्य तीथंकरों की प्रतिमाएं हैं, जो काफी प्राचीन प्रतिमाएं हैं । उसी के पास एक रास्ता जंगल को जाता है । इस जंगल में समेदशिखर पर्वत की रचना की गई है । शिखरजी के अनुसार ही निशियां स्थापित की गई हैं । उसी तरह जल मंदिर है ।
इसी मन्दिर में जब हम वापिस आते हैं तो दूसरी तरफ भगवान वाहुवली का आधुनिक मन्दिर हैं । इस तरफ प्राचीन मन्दिर में एक ब्रह्मचारी आश्रम मन्दिर है, जहां शस्त्र रवाध्याय की सुन्दर व्यवस्था है ।
यह मंदिर शिखर जी की तरह वंदरों की वनस्थली है । सारे हस्तिनापुर में अंग्रेजों के जमाने से ही शिकार खेलना मना है । इसका कारण यहां जंगल व जंगली जानवर अपना प्राकृतिक जीवन जीते हैं । श्री दिगम्बर निशियां :
दिगम्बर जैन समाज की पांच निशियां है । यहां चरण के स्थान पर रवास्तिक बनाये गए हैं । एक निशि तो श्वेताम्बर निशि से ३ कि.मी. की दूरी पर है ।।
श्वेताम्बर निशियों के सामने तीन तीर्थंकरों की छत्रियां हैं । जहां स्वास्तिक हैं । इस टीले पर एक प्राचीन स्तूप भी है । शायद यह उन पांच स्तूपों में से एक है।
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