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- आस्था की ओर बढ़ते कदम दोहराया है । यहां प्राचीन काल से ५ मन्दिरों-व ५ स्तूपों का वर्णन आया है । यहां पांचों स्तूप तो विद्यमान हैं पर यहां कोई जैन मन्दिर अधिक पुराना नहीं । सभी मन्दिर मुस्लमानों के शासन के अन्तिम दिनों के हैं । सभी मन्दिर व स्तूप विक्रमी १७-१८ शताव्दी तक विद्यमान थे । आक्रमणकारी के आक्रमण व गंगा की भयंकर वाढ़ इस तीर्थ को बहाकर ले गई । अव यहां बचे हैं रेत के ऊंचे-ऊंचे टीले ।
जैन समाज प्रथम तीर्थकर भगवान ऋषभ्देव से भगवान ___ महावीर तक और उनके वाद इस तीर्थ से जुड़ा रहा है ।
यहां पर कुछ प्रसिद्ध संस्थाओं का हम परिचय दे रहे हैं । श्वेताम्वर मन्दिर
यहां मूलनायक प्रभु शातिनाथ का मन्दिर धर्मशालाओं से घिरा हुआ है । इस प्रतिमा की स्थापना १६२६ वैसाख के दिन श्रीजिन कल्याण के द्वारा हुई थी । इनको अव भव्य रूप दे दिया गया है । इस तीर्थ को व्यवस्था में श्री आनन्द जी कल्याण जी पेढ़ी अहमदावाद का अभूतपूर्व सहयोग है । इस मन्दिर में धर्मशाला के अतिरिक्त भव्य भोजनशाला, पारणास्थल, पारणा मन्दिर, शोभायमान है । श्री ऋषभदेव का पारणा स्थल व भव्य मन्दिर :
भगवान ऋषभदेव व श्रेयांस कुमार के जीवन से सम्वन्धित झांकियां संगमरमर में कलाकृत की गई हैं । यह झांकियां मनमोहक रूप से देखी जा सकती हैं । भगवान शांतिनाथ का चौमुखा मन्दिर वालाश्रम है । जहां आसपास के गांवों के वच्चे गुरुकुल में पदति से पढ़ते हैं । यहां दादावाड़ी व धर्मशाला है । एक जैन स्थानक भी हस्तिनापुर में है, जहां रहने की व्यवस्था भी है ।
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