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= ગ્રામ્યા . ગોર હો હમ लगता था । हमने इस नगरी को प्रणाम किया और आगे बढ़ गये । श्री सिंहपूरी :
यह स्थल प्रभु श्रेयांस नाथ च्यवन, जन्मदीक्षा व केवलज्ञान रथल है । यह स्टेशन वाराणसी छावनी से ३ कि. मी. दूर है जहां से सभी आवागमन के साधन उपलब्ध हैं । इसका दूसरा नाम सारनाथ है । यहां महात्मा बुद्ध का प्रथम उपदेश हुआ था, यहां अनेकों बौद्ध मन्दिर व मट हैं । देश-विदेश के वौद्ध भिक्षु घूमते देखे जा सकते हैं । सारनाथ के चौराहे पर एक टीले पर प्राचीन दिगम्बर जैन मन्दिर है । श्वेताम्वर मन्दिर सारनाथ से १ कि.मी. दूर हीरावणपुर गांव में है । यह स्थान चन्द्रवती तीर्थ से १५ कि.मी. की दूरी
पर है । इस क्षेत्र का इतिहास भगवान श्रेयांस नाथ से शुरु __ होता है जहां दिगम्बर मन्दिर है । उसके पास १८३ फुट ऊंचा प्राचीन कलात्मक अष्टकोण स्तूप है । इसे बौद्ध अशोक स्तूप कहते हैं । पर मन्दिर में एक पट लगा है, इसमें कहा गया है, 'यहां प्रभु श्रेयांस नाथ का समोसरण हुआ था । उनकी स्मृति में मौर्य सम्राट चन्द्रगुप्त ने यह स्तूप वनवाया था । वह लगभग २२०० वर्ष पुराना है । यहां के प्राचीन विशाल स्तूप की विचित्र कला वरणातीत यहां श्वेताम्बर व दिगम्बर धर्मशालाएं हैं । यहां रहने के लिये गैस्ट हाऊस
भी हैं । हमने यहां देखा कि जैनों से अधिक यहां विदेशी __ यात्री ज्यादा आते हैं । हमने श्वेताम्वर व दिगम्वर मन्दिर
की पूजा में भाग लिया 1 यहां वौद्ध पालीशोध संस्थान में प्रतिमाओं की भरमार है । महात्मा बुद्ध की अधिकांश प्रतिमाएं इस शोध संस्थान के संग्रहालय में हैं । सभी प्रतिमाएं लाल रंग की हैं । इस स्थान पर भारत सरकार का
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