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- आस्था की ओर बढ़ते कदम चिन्ह मिला था जो अशोक के स्तम्भ पर खुदा था । इसके टुकड़ों को जोड़कर वर्तमान चिन्ह बनाया गया है ।
प्राचीन बौद्ध मठों के खण्डहर, यहां वौद्ध संस्कृति के केन्द्र व तीर्थ का प्रमाण हैं । यहां स्वयं अशोक ने मठ की स्थापना की थी । यहां भिक्षुओं को पढ़ाने का अच्छा संस्थान था, यहां से मैंने बौद्ध धर्म के दो ग्रन्थ खरीदे । एक का नाम है वौद्धचर्या, दूसरा था धम्मपद । यह पाली संस्थान से वौद्ध ग्रन्थों पर विशाल स्तर पर काम होता है । यहां सारे ग्रन्थों को पुनः प्रकाशित करवाया जा रहा है । भगवान बुद्ध के २५०० साला निर्वाण महोत्सव पर भारत सरकार ने समस्त पाली साहित्य का देवानगरी में करवाकर प्रकाशित करवाया ।
अव रात्रि होने वाली थी । टैक्सी वाले ने हमें कहा, "वहां एक प्राचीन श्वेताम्वर जैन मन्दिर देखने योग्य है ।" हमारी इच्छा को जानकर उसने गाड़ी इस मन्दिर की ओर घुमा दी । यह वाराणसी स्टेशन से ३ कि.मी. दूर मध्य में गंगा के किनारे है । इसकी कला अत्यन्त दर्शनीय है । प्रभु पार्श्वनाथ का उपदेश स्थल होने के कारण इसे पवित्र माना जाता है । मन्दिर विशाल है, इसमें वर्तमान के २४ तीर्थकरों की प्रतिमाएं स्थापित हैं ।
भूत, वर्तमान और भविष्य की चौवीसी व २० विहरमान तीर्थकरों की सुन्दर प्रतिमाएं हैं । यह शाश्वत तीर्थकरों का पट्ट है । यहां ६६ तीर्थकरों की प्रतिमाएं हैं । ऐसी भव्य प्रतिमाएं दुलंभ हैं । यह उपाश्रय और शास्त्रों का विशल भण्डार है । मन्दिर के निकट ही ८ जैन मन्दिर हैं ।
वाराणसी में बहुत कुछ देखने योग्य है । असल में यहां आकर व्यक्ति कुछ भी छोड़ नहीं सकता । इस यात्रा का इतना सार है कि यहां आकर व्यक्ति हर क्षण, हर पल प्रभु
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