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= आस्था की ओर बढ़ते कदम जीता जागता प्रमाण है । हमें इस तीर्थ के दर्शन, वन्दना का अवसर मिला, यह प्रभु सुपार्श्वनाथ का निमन्त्रण था । श्री चन्द्रप्रभू का जन्म स्थान-चन्द्रपूरी :
भगवान चन्द्रप्रभु का च्यवन, जन्म, दीक्षा व केवलज्ञान के स्थान का नाम चन्द्रपुरी है । वाराणसी से यह २३ कि. मी. है । स्टेशन से सभी प्रकार के वाहन उपलब्ध हैं । यहां दिन भर वसों का आगमन रहता है । मन्दिर के लिये जीप उपलब्ध है । कादीपुर व रजवीरा रेलवे स्टेशन से ४ कि.मी. की दूरी है । यह तीर्थ वाराणसी-गाजीपुर मार्ग पर सड़क के दाहिनी ओर स्थित है । इस तीर्थ का कण-कण वन्दनीय है । गंगा तट पर वने दिगम्बर व श्वेताम्बर मन्दिर दोनों आस पास हैं । दोनों मन्दिरों की व्यवस्था एक ही गंगा के किनारे स्थित इस पावन स्थली का प्राकृतिक सौन्दर्य अत्यन्त मनोरम है । हमने इस तीर्थ की यात्रा जीप द्वारा की । इस मन्दिर में काफी प्राचीन प्रतिमा है । दोनों मन्दिर सुन्दर प्रतिमाओं से सुशोभित हैं । भगवान चन्द्रप्रभु जी की प्रतिमा मनोहारी है । हृदय में वैराग्य उत्पन्न करने वाली है ।
यहां १५-१५ कमरे की दो श्वेताम्बर व दिगम्बर धर्मशाला है । भोजनशाला की सुन्दर व्यवस्था है । हमारा यह सौभाग्य था कि हम भगवान चन्द्रप्रभु के जन्म स्थान को वन्दना कर रहे थे । यहां भी यात्रियों की कोई कमी नहीं है । यात्री यहां काफी रुकना पसन्द करते हैं । यात्री कई दिन रुककर प्रभु भक्ति में स्वयं को समर्पित करते हैं । इस नगर का नाम चन्द्रवती भी है ।
प्रभु चन्द्रप्रभु को वन्दना पूजन किया । फिर हमें वहां के जैन-बौद्ध तीर्थों की ओर रवाना होना था । हम भ्रमण करते थक चुके थे, पर एक तीर्थ को छोड़ना भी ठीक नहीं
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