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आस्था की ओर बढ़ते कदम
लिया । उनकी क्रीड़ा स्थली इसी वाराणसी के घाट रहे । उन्होंने यहां ही दीक्षा ली । अनेकों बार वह जनकल्याणर्थ हेतू यहां पधारे । उनकी इस याद को उन्होंने भक्तिपूर्वक संभाल कर रखा । आज भी प्रभु पार्श्वनाथ के दीवाने इस जगह पूजा, भक्ति से अपना जीवन धन्य करते हैं । इस मन्दिर में अधिकांश प्रतिमायें धातु की हैं । हमारे लिये यह सौभाग्य का समय था । हम प्रभु पार्श्वनाथ की भक्ति में मगन हो गये । हमारे सामने इतना आध्यात्मिक वातावरण था कि इसका नशा उतारने से भी नहीं उतर रहा था 1 भजन, रतवन, मंत्रोंचार से भाव पूजा व अष्टद्रव्यों से द्रव्य पूजा हो रही थी । हम यहां कुछ समय रुके, आसपास के स्थलों के दर्शन किये, फिर अगले गन्तव्य की रवाना हो
गये ।
श्री
भदेनीपुर तीर्थ :
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यहां से चलकर, हम १५ कि.मी. की दूरी पर भदैनी तीर्थ पहुंचे । यह तीर्थ गंगा के किनारे है । यह सातवें तीर्थंकर सुपार्श्वनाथ की उच्वन, जन्म दीक्षा, केवल्य ज्ञान हुए थे । यह मन्दिर जैन घाट पर स्थित है, स्टेशन से यह ४ कि.मी. दूरी पर है । यह वाराणसी का भाग है । यहां से गंगा नदी के तट पर स्थापत मन्दिरों का नजारा अति शोभायमान लगता है । शांत वातावरण में कल-कल वहती हुई गंगा नदी भी अपनी मन्द मधुर स्वर में मानो प्रभु का नाम निरन्तर संस्मरण कर रही हो । यहां श्वेताम्वर व दिगम्वर धर्मशालाएं व मन्दिर हैं । हम दोनों मन्दिरों में पहुंचे । यहां भक्तों का तांता लगा मिला। यह वाराणसी के मन्दिरों की खूबी है कि आप जिस मन्दिर में जाओगे, भक्तों की कमी नहीं मिलेगी । यह मन्दिर अपनी प्राचीनता का
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