________________
आस्था की ओर बढ़ते कदम । प्रभु पार्श्वनाथ का आधा शरीर वर्षों के प्रभाव से जलमग्न हो गया । शहर के सभी मकान डूव गये । लोग त्राहि त्राहि करने लगे । प्रभु पार्श्वनाथ के सेवक धरनेन्द्र व पद्मावती ने इस परिषह में सहायता की । धरेन्द्र ने अपना फन फैलाकर प्रभु पार्श्वनाथ पर अपना छत्र किया । मिथ्यात्वी कमट जितनी वर्षा करता रहा, प्रभु पार्श्वनाथ का आसन उतना ही ऊंचा होता गया । आखिर प्रभु पार्श्वनाथ को केवलज्ञान प्राप्त हो गया । कमट का अहंकार ‘समाप्त हुआ । प्रभु पार्श्वनाथ का समोसरण लगा जिसमें अनेकों जीवों ने प्रभु का उपदेश सुनकर आत्मा का उदार किया । कई भव्य आत्माओं ने मुनिव्रत व श्रावक व्रत ग्रहण किया । फिर प्रभु पार्श्वनाथ ने कश्मीर से कन्याकुमारी तक का अपना जन उपयोगी धर्म उपदेश दिया । यही कारण है कि जैन धर्म के चौवीस तीर्थकरों में सबसे अधिक पूजा भगवान पार्श्वनाथ की होती है । उन्हें प्रभावक तीर्थकर के रूप में जाना जाता है । समेद शिखर पर प्रभु पार्श्वनाथ मोक्ष पधारे थे । इसलिये हमने प्रभु 'पार्श्वनाथ के जन्म स्थान का वर्णन संक्षेप में किया है । श्री भेलूपुरी तीर्थ :
यह तीर्थ वाराणसी स्टेशन से ३ कि.मी. दूर भेलुपुरी मुहल्ले में स्थित है । यहां हम आटोरिक्शा में पहुंचे । यह मन्दिर भारतवर्ष का एक मात्र मन्दिर ऐसा मन्दिर है, जहां श्वेताम्वर व दिगम्बर जैन एक ही वेदी में भगवान पार्श्वनाथ की पूजा करते हैं पर कुछ समय हुआ जव दिगम्बर मन्दिर की स्थापना के इसी मन्दिर के अहाते में हुई है । यहां श्वेताम्बर व दिगम्बर धर्मशाला है । हम प्रभ पार्श्वनाथ की जन्म स्थली में स्वयं को पाकर जीवन को धन्य मान रहे थे । यह वह स्थल था, जहां राजकुमार पार्श्व ने जन्म
377