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आस्था की ओर बढ़ते कदम मालविया ने की थी । यहां भारतीय विद्या पढ़ाने का अच्छा प्रवन्ध है । प्राकृत, नेपाली भाषाओं के अतिरिक्त यहां जैन वौद्ध व हिन्दू धर्म के अध्ययन के लिये अच्छे केन्द्र हैं । इनमें से कई केन्द्रों को देखने का मुझे सौभाग्य मिला । हिन्दू विश्वविद्यालय को मैंने सारा साहित्य भेंट किया । काशी विद्वानों की जननी है, यहां की मिट्टी में गुण हैं कि यहां सरस्वती पुत्रों की भरमार है। यहां शंकराचार्य भी आये थे । यहां विभिन्न धर्मों में आपसी शास्त्रार्थ हुए थे । यहां स्वामी आचार्य प्रसिद्ध तर्कवादी पंडित यशोविजय जी भी गुजरात से वहां आये थे । यहां की पीठों में धर्म, भाषा, न्याय, तर्क की शिक्षा का जैसा प्रवन्ध है, वैसा भारत में कहीं नहीं देखा जा सकता ।
आज भी धर्म, संस्कृति व इतिहास का केन्द्र है । यह तीर्थ है । गंगा नदी इसके चरणों में वहती है । इस नगर का कण-कण पूज्नीय है । जव मुस्लमान भारत में आये तो उन्हें भी वाराणसी पसन्द आया । उन्होंने यहां रुकने का मन वनाया । अनेकों मस्जिदों का निर्माण किया । वाराणसी के पास ही उन्होंने नया नगर बनाया जिसका नाम मुगल सराय है । शेरशाह सूरि ने इस नगर को जी.टी. रोड से जोड़ दिया । इससे पहले यह किस मार्ग से जुड़ा था इसका वर्णन भारतीय इतिहास में कम मिलता है । यहां चीनी यात्री यूनसांग भी आया था । उसने यहां वौद्ध तीर्थो की स्थिति के वारे में वर्णन बताया है । रात्री हो चुकी थी । हमने एक धर्मशाला में स्थान ग्रहण किया, फिर बाहर से भोजन किया । यहां की रात्रि वहुत सुन्दर होती है । गंगा के किनारे सारा शहर झिलमिला रहा था । लगता था जैसे समुद्र के
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वीच दीप हों । सारा वातावरण धार्मिक भजनों व आरतीयों से गूंज रहा था । सारा वातावरण आत्मा को भक्ति की ओर
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