________________
आस्था की ओर बढ़ते कदम
गया है । इस वृक्ष के पत्ते यहां के यात्रियों के लिये यादगार
हैं ।
" कहते हैं महात्मा बुद्ध ज्ञान की तलाश में काफी स्थानों पर भटके, कई सन्यासियों से मिले । उन्होंने कठोर तप किया, उनका शरीर का अस्थियों का पिंजर वन गया । उनके शरीर की नाड़ियां तक दिखाई देने लगीं। वह कमजोर पड़ गये। ऐसी अवस्था में वह इस वृक्ष के नीचे पधारे ।” ' रात्रि का समय था, एक काफिला गुजर रहा था 1 काफिले में एक नृतकी गा रही थी । उसने अपने साथी साजिदों को कहा, “तू इकतारा ध्यान से बजा । तू इसकी तार को इतना मत कस कि तार टूट ही जाये । तार को इतना ढीला मत छोड़ कि यह साज बजना बंद हो जाये ।"
"L
" मात्र यह उद्बोधन के दो शब्दों में बुद्ध को ज्ञान की किरण दिखाई दी, उन्होंने सोचा “शरीर को इतना सुखाना भी नहीं चाहिये कि यह काम करना बंद कर दे । शरीर को इतना ढीला भी नहीं छोड़ना चाहिये, कि यह स्वछन्द वन जाये, धर्म को छोड़कर अधर्म को अपनाए । बुद्ध ने कटोर तप छोड़ दिया, उन्होंने ध्यानमार्ग अपनाया । बुद्ध ने अपने धर्म को ध्यान मार्ग का नाम दिया । उन्होंने मध्यम मार्ग का रास्ता प्ररूपित किया ।"
" फिर सुबह हुई, सिद्धार्थ शाक्यमुनि बोधि को प्राप्त हो गये अचानक एक स्त्री आई । वह वंट के वृक्ष के नीचे खीर चढ़ाने आई थी । वहां वट वृक्ष के नीचे बैठे महात्मा वुद्ध को इसने साक्षात् ब्रह्मदेवता मानकर खीर अर्पण की । वुद्ध ने खीर खाई, उनकी भूख मिटी । खीर इतनी स्वादिष्ट थी कि उन्होंने उस स्त्री से पूछा, "यह खीर इतनी स्वादिष्ट क्यों है ?"
स्त्री ने कहा, “महाराज ! मेरे यहां सौ गायें हैं, मैंने
367
i