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आस्था की ओर बढ़ते कदम
है । सुवह यहां हिन्दू व वौद्ध तीर्थो की यात्रा कीजिये । हम रात्रि को २ वजे यहां पहुंचे । यहां स्टेशन के करीव एक होटल में ठहरे । यहीं थोड़ा भोजन किया, फिर सो गये । लम्वी यात्रा की थकान हमें महसूस हुई । सुवह हमने कमरा छोड़ा । अपना सामान लेकर गया दर्शन करने निकले । गया एक प्राचीन शहर है । यहां एक नदी है जिसे बौद्ध उरवेला नदी कहते हैं । इस तीर्थ का पुराणों में बहुत वर्णन है । यहां पांडों की भरमार है । यहां सारे भारत से पिंड दान करने आते है । गली गली में कुरसीनामे वही उठाये पांडे घूमते हैं, जो यह पिण्ड भराने वाले का नाम दर्ज कर लेते हैं । यह प्राचीन हिन्दू मन्दिरों, धर्मशालाओं का अच्छा समूह है । यहां पांडे आपसे पहचान जरूर प्राप्त करते हैं । वह आपका जिला व गांव का नाम अवश्य पूछते हैं । फिर वही पांडा आपके पास पहुंचता है जिसके पास आपके गांव का रिकार्ड
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गया का दूसरा भाग वोधगया है । इसका सम्वन्ध महात्मा बुद्ध से है । यहां संसार के हर देश का मन्दिर देखने को मिलता है । दो दिगम्बर जैन मन्दिर भी हैं। यहां अधिकांश विदेशी यात्री ही आते हैं। यहां वह स्थान हजारों साल से वरकरार है, जहां महात्मा वुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी । वह इतिहासिक वटवृक्ष है, भगवान वुद्ध का चबूतरा है । महात्मा बुद्ध का प्राचीन मन्दिर है । इसकी प्राचीनता व भव्यता इतिहासिक है । वृक्ष के वारे में प्रसिद्ध है कि वट वृक्ष की एक शाखा सम्राट अशोक के पुत्र महेन्द्र व पुत्री सघमित्रा ने भिक्षु वनकर, श्रीलंका के अनुराधापुर में लगाई । मध्य काल में आक्रमणकारियों ने इस मन्दिर का प्रारूप वदल डाला । इस वृक्ष को उखाड़ फैंका । करीव १०० वर्ष से पहले श्रीलंका वाली वृक्ष की शाखा को यहां लगाया
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