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- आस्था की ओर बढ़ते कदम आग्रह था कि हम रुकें, पर घर से निकले काफी दिन हो गये थे । उन दिनों एस.टी.डी. कोई सुविधा नहीं धी कि घरवालों को कुछ सूचना दे पाते ।
वापस सिकन्दरीया आये, शाम हो चुकी थी । हमने तांगा लिया । मात्र दो कि.मी. पर ही बस स्टैंड आ गया । यहां हमारा अगला गन्तव्य स्थान को बस पकड़ना धी । हमारी कुछ यात्रा ट्रेन से सम्पन्न हुई । रात्रि पड़ सुकी थी, यात्रा का क्रम चालू था । हमें यह तय करना था कि हम बोद्धगया जायें या सीधे वनारस । दोनों स्थान महत्वपूर्ण व दर्शनीय थे । पर इतनी लम्बी यात्रा का अन्त भी सुखद था । मेरे मन में अपने धर्मभ्राता रवीन्द्र जैन को तीर्थ यात्रा कराने की भावना थी । इस यात्रा में बिहार के २-३ स्थानों को छोड़कर सभी जैन इतिहासिक स्थानों की यात्रा हनने कर ली थी । सवसे वड़ी वात प्रभु महावीर के जन्म स्थानों की यात्रा, राजगृही, पावापुरी व समेद शिखर की यात्रा थी । रास्ते में जो तीर्थ आये हमने दर्शन किये । चंपापुरी में भूचाल आया हुआ था, जिसका पता हमें नहीं था । इन तीथों का पता हमें बहुत वाद में चला । बाकी हम जन्म स्थान के कारण लम्बा मार्ग तय कर लिया था । वहां से लछुवाड़ के बस स्टैंड से वाराणसी आने के कुछ सफर हमने ट्रेन से किया । बोध गया :
हमें पता चला कि यहां करीब ही प्रसिद्ध हिन्दू व बौद्ध तीर्थ नजदीक पड़ता है । शाम हो चुकी थी । हमने एक जीप ली । उसे पता किया कि वाराणसी को यहां से कब ट्रेन मिलेगी । उसने बताया कि रात्रि को यहां से कोई ट्रेन नहीं जाती । आप गया जी रुकें । यह अन्तर्राष्ट्रीय पर्यटन स्थल
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