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સ્થા ી ઝોર લો મ सुन्दरता अभी कम नहीं हुई । यहां के लोग सरल व विनम्र हैं । अभी-अभी साध्वी चन्दना ने प्रभु महावीर के २६०० जन्म दिवस पर यहां एक स्कूल की स्थापना की है । इस स्थान का विकास हो रहा है । उनकी प्रेरणा से यहां वलि प्रथा वन्द हो चुकी है । अव साध्वी जी वहां परोपकारी योजना चालू कर रही हैं ।
यह तीर्थ लघुवाड़ से दूर स्थित कुंडलधार तलहटी के ऊपर स्थित है । प्रभु महावीर के जीवन के तीस वर्ष यहां व्यतीत हुए थे । तलहटी में दो छोटे मन्दिर भी हैं । इन स्थान को च्यवन व दीक्षा नाम से संबोधित किया जाता है । प्रभु की प्रतिमा प्राचीन होने के साथ-साथ पद्मासन में स्थित है । ठहरने के लिये यहां की धर्मशाला में १०० कमरे हैं । सने कमरे सभी सुविधाजनक हैं । पहाड़ पर पानी की सुविधा है । इसका जिला जमुई है । यहां पहाड़ी पर चढ़ने में कठिनाई होती है ।
लछुवाड़ यात्रा :
हम तीन बजे के बाद लछुवाड़ पहुंचे । हमने पहले वहां धर्मशाला वाले मन्दिरों के दर्शन किये, फिर पहाड़ पर ट्राली से गये । वहां भव्य परिसर में प्रभु महावीर का मन्दिर है। जिसे स्थानीय लोग व श्वेताम्बर समाज इस स्थान को जन्म स्थान कहते हैं । प्राचीन काल से ही यात्री लोग प्रभु महावीर की प्राचीन प्रतिमा के दर्शन कर आत्म शांति अनुभव करते रहे हैं। यह कार्य जल्दी ही सम्पन्न हो गया । हम पर्वत की सौरम्य घाटी में प्रभु महावीर के चरणों में सुन रहे थे । फिर नीचे उतरे । वापसी पर वाकी के मन्दिरों के दर्शन किये । मैंने प्रभु महावीर की तीसरी जन्म तो देख ली थी । अब हम वापस आये । लोगों का
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