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ગ્રાસ્થા ની ઝોર વો મ हम जहां-जहां भी गये, हमें नकसलवाड़ियों का सबसे अधिक प्रभाव हर स्थान पर लगा । यहां के हर गांव में लाल झंडे दिखाई देते हैं । हम जिस दिन लछुवाड़ पहुंचे, उस दिन गांव के बाहर आदिवासी अपनी वेषभूषा में नाचते गाते पहाड़ के नीचे वाले मन्दिर में आ रहे थे । खूब ढोल, नगारे वज रहे थे । हर स्थान पर चहल-पहल थी ।
दर्शन :
यह स्थान प्रभु महावीर का जन्मस्थल माना जाता है । गांव का मन्दिर श्री यतिजी का है। जहां धर्मशाला, भोजनशाला है, रहने की सुन्दर व्यवस्था है, प्रभु महावीर का जन्म स्थान ऊपर पहाड़ी पर है । जहां तलहटी में प्रभु महावीर की २००० वर्ष से ज्यादा प्राचीन प्रतिमा विराजमान है, मंदिर में प्राचीनता के दर्शन कदम-कदम पर होते हैं । एक पहाड़ी पर राजा सिद्धार्थ के महल के खण्डहर हैं । पहाड़ के दूसरी ओर ब्राह्मण कुंडग्राम है, कुंडग्राम के दो भाग थे ब्राह्मण कुंडग्राम व क्षत्रिय कुंडग्राम । प्रभु महावीर का जन्न जीव ब्राह्मण कुंडग्राम के ऋषभदत्त ब्राह्मण की पत्नी देवानन्दा ब्राह्मणी गर्भ में ८४ दिन रहा । फिर शकेन्द्र ने इस गर्भ का परिवर्तन क्षत्रिय कुंडग्राम नरेश राजा सिद्धार्थ की महारानी त्रिशला के यहां स्थापित कर दिया । यह विवरण श्वेताम्बर आगम आचारांग व कल्पसूत्र में मिलता है । यही ब्राह्मण व ब्राह्मणी प्रभु महावीर के प्रथम चतुर्मास में साधु वने । आत्म कल्याण कर मोक्ष के अधिकारी वने । भगवान महावीर के तीन कल्याणक यहीं हुए । यह तीन कल्याणक थे, च्यवन, जन्म व दीक्षा ।
प्रभु महावीर की दीक्षा छोटी सी नदी पार करके वहुसाल चैत्य में हुई थी । यह सुन्दर वन था । इसकी
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