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- વાસ્થા dી વોર વટ છે महावीर की श्वे० जन्म भूमि - लछवाड़ की ओर :
मैंने केवलज्ञान स्थान को वहीं से भाव-वन्दन किया । हमें एक यात्रियों का संघ मिल गया जो क्षत्रिय कुंडग्राम रहा था । वहां दो सीटें आराम से मिल गई । इस संघ में एक भजन मंडली व एक श्रीयति भी थे, जो गृहस्थ वस्त्र में थे । समेदशिखर में सराक जाति के वच्चों के उत्थान के लिये वहुत सारे यतियों ने पाठशाला खोल रखी है, जहां उन्हें मुफ्त शिक्षा दी जाती है । प्राचीन संस्कारों का ज्ञान करवाया जाता है । यह जाति जैन तीधंकरों को मानती है । इनकी गिनती विहार, बंगाल, उड़ीसा में पाई जाती है । दिगम्बर मुनि भी इनके गांवों में पाठशाला खोलकर इन्हें संस्कारित करते हैं । यह शाकाहारी समाज प्रभु पार्श्वनाथ को अपना इष्ट मानता है । "सराक" श्रावक का अपभ्रंश है ।
हम उसी गाड़ी में जा रहे थे, रास्ते में एक स्थान पर गाड़ी रुकी । यहां भी धार्मिक स्थल था, कुछ समय रुककर चायपान किया । सफर ज्यादा लम्वा था, हमें अव धकावट नहीं थी, मन में एक उत्साह था । प्रभु महावीर की तीसरी जन्मभूमि के दर्शन करने का सौभाग्य हमें मिल रहा था । चौदह सौ सालों से जैन तीर्थ यात्री इस स्थान की यात्रा करते रहे हैं । जन्मभूमियों में यह सबसे प्राचीन है । यहां के स्थानीय आदिवासी प्रभु महावीर के भक्त हैं । यह अपने ढंग से प्रभु महावीर के प्रति श्रद्धा रखते हैं । उस दिन भी एक जलूस आदिवासी पर्दूषण पर निकाल रहे थे। गांव में खूव चहल-पहल थी, लछुवाड़ भी अपनी नदियों व हरियावल चित्त को मंत्रमुगध करती है ।
यह स्थान वाया सिकन्दरीया में पड़ता है । विहार में
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