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आस्था की ओर बढ़ते कदम
। समेदशिखर को
समेदशिखर के लिये सीधी बसें मिलती हैं । हमारा अगला गणतव्य स्थान श्री समेदशिखर तीर्थ था बढ़ने के लिये हम बस स्टैंड पहुंचे थे । वहां से बस का इंतजार करने लगे । हमें कुछ समय के बाद शिखर जी के लिये बस मिल गई । वहां से दो रास्ते समेदशिखर के लिये जाते हैं । एक कुडरमा-झुमरीतलैया की, जहां वहुत सी अभ्रक खानें कई किलोमीटर तक फैली है, इसका कंट्रोल फौज़ के जिम्मे है । दूसरा रास्ता जम्मूई वाला है । यह रास्ता पहाड़ी है । रास्ता हरियावल व नदियों से भरा पड़ा है, जंगली जीवों से यह जंगल भरे पड़े हैं । जम्मूई ही प्रचीन गांव है, यह वस का रास्ता हमने इसी मार्ग से तय किया । यह सफर हमारे जीवन का महत्वपूर्ण सफर था । जैनधर्म में दो तीर्थ बहुत महान माने जाते हैं । पहला तीर्थ समेदशिखर है, दूसरा तीर्थ गुजरात का शत्रुंजय ( पालिताना ) तीर्थ महान माना जाता है । हर जैन सुवह उटकर जब मन्दिर में आता है तो प्रार्थना में यह दोहा बोलता है :
"समेदशिखर तीर्थ बड़ो, जहां वीसे जिन राय " या कहा जाता है
“एक वार जो वन्दन कर ले, नरक पशु गति न पावे" समेदशिखर महिमा :
समेदशिखर जैनधर्म को शान है । जैनधर्म के २४ तीर्थकरों में से २० तीर्थकरों का निर्वाण स्थल समेद शिखर हैं । सभी तीर्थंकर अनन्त काल से इस पहाड़ पर पधारते रहे हैं, तपस्या की है । रेलवे स्टेशन का नाम पारसनाथ है । समेतशिखर का दूसरा नाम पार्श्वनाथ हिल्ज है । यहां आदिवासी रहते हैं । वहां प्राचीन जैन सराक जाति रहती है, जो भगवान पार्श्वनाथ को अपना कुलदेवता मानते हैं ।
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