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- आस्था की ओर बढ़ते कदम स्टेशन पर श्वेताम्बर व दिगम्बर जैन धर्मशालाएं हैं । दोनों परम्परा के विशाल व सुन्दर मन्दिर हैं जो श्वेताम्बर व दिगम्बर दोनों परमरा से संबंधित हैं ।
__यहां से २२ कि.मी. दूर मधुवन है, जो शिखरजी पहाड़ की तलहटी है । मधुवन के आगे शिखर के पहाड़ शुरु होते हैं । यहां का कणकण पवित्र है, पूज्नीय है । इसी मधुवन में धर्मशालाएं, मन्दिर, गुरुकुल हैं । ऊपर पहाड़ ३१ मन्दिर हैं । मात्र एक मन्दिर में सांवलीया पार्श्वनाथ जी की प्रतिमा है, बाकी मन्दिरों में विभिन्न तीर्थंकरों के चरण चिन्ह हैं । यह मन्दिर पहाड़ की चोटियों पर स्थित है । यह पहाड़ प्रकृति सौन्दर्यता, जंगली जड़ी-बूटियों से भरे पड़े हैं । इस पहाड़ के बारे में दिगम्बर मान्यता है कि जो व्यक्ति जीवन में एक बार इस तीर्थ की वन्दना करता है, उसको नरक, पशु योनि प्राप्त नहीं होती । दोनों परम्परा के श्रावक-श्राविका, साधु व साध्वी यहां यात्रा करते हैं । यह तीर्थ जैन का पूज्नीय है । यहां की यात्रा महान पुण्य का कारण है । मधुवन-मधुवन है, यह धरती देवताओं की भूमि है । यहां पर आने की कल्पना ही हृदय को रोमांचित करती है । मैं पहले इस तीर्थ के दर्शन कर चुका था । परन्तु पर्वत की पात्रा कारणवश नहीं कर सका । इस तीर्थ का वर्णन ज्ञाता गर्न कथांगसुत्र में मल्लिजिन के संदर्भ में आया है, वहां तीधंकर मल्लिनाथ के निर्वाण का वर्णन करते हुए दो शब्द आए हैं :- 'सम्मेय पल्लव और सम्मेव सेलसिहिर' कल्पसूत्र में प्रभु पर्श्वनाथ के जीवन चरित्र में समेतशिखर के लिये सम्मेह सेल सिहरमि शब्द आया है । मध्यकालीन साहित्य समिधिगिरि या समाधिगिरि नाम भी प्राप्त होता है । जनसाधारण इसे पारसनाथ हिल्ज से संबोधित करते हैं । श्वेताम्बर परम्परा में इसे समेदशिखर कहते हैं । दिगम्बर
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