________________
- आस्था की ओर बढ़ते कदग जहां प्रभु महावीर ने अंतिम उपदेश दिया था, वहां एक चरण स्थापित है जो भगवान के बड़े भ्राता नन्दीवर्धन ने स्थापित किए थे । जलमंदिर के सामने एक चबूतरा है, उस स्थान पर प्रभु नहावीर का अग्नि संस्कार हुआ था, तव दीपावली का दिन था । उस दिन नवमल्ल, नव लिच्छवी आदि गणतन्त्रों के राजा भगवान की धर्मदेशना सुनने को आये थे । भगवान महावीर अंतिम उपदेश उत्तराध्ययन सूत्र के रूप में दिया । इसका वर्णन कल्पसूत्र में विस्तृत रूप में मिलता है । यह ग्रन्थ दो हजार वर्ष पुराना है । यहां महावीर के रूप में जलमंदिर विश्व प्रसिद्ध है । सारा मंदिर एक तालाव के मध्य स्थित है । इस तालाव में लाल कमल खिले रहते हैं । इस मन्दिर का निर्माण भगवान के बड़े भ्राता राजा नन्दीवर्धन ने किया था । यहां प्रभु महावीर के चरण के साथ-साथ सुधर्मा स्वानी व गौतम स्वामी के चरण भी स्थापित हैं । इसका नंदिर का जीर्णद्वार होता रहा है । यह न्दिर समुद्र के न८ दीप की तरह सुशोभित है । यहां ११
गधर, १६ सतियां तथा ४ दादाओं के चरण भी स्थापित हैं । इस मन्दिर पर कोई शिलालेख नहीं । यहां दो श्वेताम्बर नन्दिर हैं । पुराना समोसरण मन्दिर भव्य है । यहां प्रथम समोसरण हुआ था । प्रभु महावीर की भव्य प्रतिमा के अतिरिक्त अन्य तीर्थकर भगवान भी विराजमान हैं । जलमंदिर एक विशाल पुल से जुड़ा है । यहां महताब बीबी का मन्दिर है. जहां चरण हैं । दीवाली को यहां विशल मेला लगता है । जलमंदिर में लडू चढ़ाया जाता है । नया समोसरण मन्दिर :
कहा जाता है प्रभु महावीर ने अपना अंतिम उपदेश यहां दिया था । यह एक स्तूप है जो प्राचीन है । उसके पास
340.