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- आस्था की ओर बढ़ते कदग एक कुंअं है, इस कुंएं को चमत्कारी माना जाता है । इसके जल के बारे में आचार्य जिनप्रभव का कथन है कि इसके जल से दीपावली को दीपक जलाए जाते थे । यह स्थान पावा से १ कि.मी. की दूरी पर जंगल में है । कुंआ और स्तूप सुरक्षित हैं । यहां गुजराती समाज ने भव्य समोसरण मंदिर का निर्माण किया है । इस मन्दिर की गणना भारत के संगमरमर के प्रसिद्ध मन्दिरों में की जाती है । इस मन्दिर के तोरण व संरचना जैन वास्तु विधि के आधार पर की गई है । श्वेताम्बर मन्दिर में धर्मशाला है । जहां खाने की बहुत अच्छी व्यवस्था है । जलमंदिर के दूसरी ओर दिगम्बर जैन मदिर व धर्मशाला है । पावापुरी वैसे गांव है, यहां के लोग खेतीबाड़ी से अपना गुजारा करते हैं । गांव में दुकानें नामात्र ही हैं । यात्रियों की व्यवस्था मन्दिर के जिम्मे है । . जिस समय हम पावापुरी पहुंचे, बिजली गुल थी । अंधेरे में हम जलमंदिर में गये । हमारा सौभाग्य था कि आरती का समय था । कोई यात्री और नहीं था । हमें सर्वप्रथम जलमंदिर में आरती करने का सौभाग्य मिला । फिर श्वेताम्बर मंदिर में आरती के लिये पुजारी को मिले । विधि अनुसार पुजारी ने आरती करवाई । रात्रि में ही हम वापस श्वेताम्बर मंदिर में लौटे । हमें यहां कमरा मिल गना । यहां रात्रि को हम दोनों ठहरे । मंदिर की भव्यता देखने को बनती है । यहां भोजन किया, कर्मचारियों ने पूरा सहयोग किया । रात्रि को मेरे धर्मभ्राता को थोड़ा सा बुखार आया, जो औषधि से ठीक कर लिया गया । सवकुछ प्रभु महावीर की लीला थी, फिर कभी मेरे धर्मभ्राता रवीन्द्र जैन को तकलीफ नहीं हुई । इसका कारण पावापुरी में मच्छरों का आतंक था । सुवह हुई, मन्दिर में पूजा की, मंदिर को दिल खोलकर देखा, जीर्णोद्वार का कार्य कई वर्षों से चल रहा था,
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