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== anણ્યા શી ર લઇને દમ करने वाला, परमात्म अवस्था प्रदान करने वाला, केवलज्ञान उत्पन्न हुआ । प्रभु सर्वक्ष व सर्वदर्भ व अहंत व जिन बन गये । जैन मान्यता है कि तीर्थ क अपनी प्रथम सभा में तीर्थ सभी तीर्थ की स्थापना करते हैं. जिसमें देव व मनुष्य शामिल होते हैं । इस उपदेश में सभी देव उपस्थित हुए हैं । परन्तु यह अचम्भा था कि भु महावीर का प्रथम उपदेश वेकार गया । किसी ने भी साधु धर्म या गृहस्थ धर्म के व्रत को अंगीकार न किया । न महावीर ने यहां से विहार किया । ६६ दिन तक मौन डे । श्वेताम्बर मान्यता के अनुसार उन्होंने धर्मरूपी तीर्थ स्थापना पावापुरी नगर में की, परन्तु दिगम्बर पन्न्धरा यह कुट दूरी पर राजगह को ही तीर्थ स्थापना का स्थान मान्न है । जैन मान्यता के अनुसार तीथंकर नामकरण के उदय से तीर्थकर साधु साध्वी, श्राविक व श्राविका रूपी तीथं की स्थापना करते हैं। तीर्थकर आट प्रतिहार्य युक्त होते हैं । इनके उपदेश स्थान को समोसरण कहते हैं, जिसका निमार देवता करते हैं । स्वर्ग के ६८ इन्द्र अपने देव परिवारजने माहत, प्रभु की सेवा में उपस्थित रहते हैं । प्रभु के ३४ अतिशय होते हैं । ३. वाणी के अतिशय होते हैं । तीथंकरों की माता गर्भ में १४ . या १६ स्वप्न देखती है । तीर्थकर गर्भ में भी तीन ज्ञान के धारक होते हैं । इन अतिशयों के कारण तीर्थकर भु त्रिलोक पूज्य होते हैं । तीथंकर पन्नाला अशोकवृक्ष के नीचे विराजे हैं । उनके सिर पर तीन छत्र झूलते हैं । वह रत्नजड़ित सिंहासन पर विराजते हैं । उनके सिर के पीछे आभामंडल रहता है । दो चामरधान उन्हें चामर ढुलाते हैं । धर्मचक्र हर समय साथ रहता है । पुष्पवर्षा हर समय होती रहती है, स्वर्ग के देव दुंदुभियां जाते हैं । समोसरण के आकार का विस्तृत वर्णन जैन अपनों से मिलता है ।
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