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आस्था की ओर बढ़ते कदम
जम्वू स्वामी आठ पत्नीयों से दीक्षा की आज्ञा मांग रहे थे । प्रभव चोर ने स्वयं को धिक्कारा । सुबह हुई प्रभव चोर व उसके ५०० साथी जम्बू कुमार की आठ पत्नीयों से दीक्षा के • लिये गणधर सुधर्मा के पास पहुंचे । ऐसे कुलरत्न राजगृही ने पैदा किये । सूत्रकृतांग सूत्र में नालन्दा को राजगृही का मुहल्ला बताया गया है जिससे सिद्ध होता है कि प्राचीन राजगृही विस्तृत क्षेत्र में फैली थी, जिसमें गोवरग्राम, कुण्डलपुर आदि क्षेत्र पड़ते थे ।
कुण्डलपुर में हमने प्रभु दर्शन किया । पूजा अर्चना में भाग लिया । फिर अपनी गाड़ी में सवार हो गये । अव हन ऐसी भूमि पर पहुंचने वाले थे, जिसका सीधा सम्वन्ध प्रभु महावीर से था । इसकी भव्यता, इतिहास, कला हमारे दिमाग में घूम रहा था । असल में यात्रा और पर्यटन में जमीन आसमान का अन्तर है । यात्रा में श्रद्धा ही प्रधान रहती है । पर्यटन में हर वस्तु भौतिक सुख की दृष्टि से होती है । मेरे विचार से धर्मतीर्थ कभी पर्यटन स्थल नहीं बन सकते, न ही उन्हें वनना चाहिये, नहीं तो तीर्थ अश्रद्धा का केन्द्र हो जायेगा । आध्यात्मिकता समाप्त हो जायेगी । तीथों की मान्यता समाप्त हो जायेगी ।
पावा सिद्ध सिद्ध क्षेत्र क्षेत्र में :
जैन इतिहास में पावापुरी महत्वपूर्ण स्थान है । शास्त्रों का कथन है कि प्रभु महावीर की प्रथम व अंतिम देशना यहां हुई थी । प्रभु महावीर को केवलज्ञान तो ऋजुवालिका नदी के किनारे शालवृक्ष के नीचे शाम किसान के खेत में हुआ । तब प्रभु महावीर को तपस्या करते साढे बारह वर्ष से अधिक समय बीत चुका था । प्रभु महावीर गो दुहीका के आसन में विराजमान थे । तभी उनकी आत्मा को कर्मबंधन से मुक्त
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