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- વાસ્યા શી વોર दादागुरु के चरणों के दर्शन भी होते हैं । इसके इलावा यहां ११ गणधरों के चरण प्रतिविम्वित हैं । यह गणधर गौतम का जन्म स्थान है । इस तीर्थ की यात्रा भाग्यशाली ही कर पाते हैं । यहां गुरु गौतम स्वामी की विशेष अनुकम्पा है जो इस तीर्थ की यात्रा सच्चे मन से करता है । वह यहां से कोई खाली नहीं जाता। उसकी समस्त मनोकामनाएं ऋषभदेव की कृपा से पूरी होती हैं । हमने दोनों स्थानों के दर्शन कुछ तीव्रता से किये क्योंकि यहां आरती का समय ७ बजे का था, उसी हिसाव से पहुंचे, आरती हो रही थी । इस तीर्थ का वातावरण इस जगह को चार चांद लगाता है । अभी तक हम जहां जहां भी पहुंचे वह सभी तीर्थक्षेत्र थे । वैशाली, राजगृह नालन्दा, गोवरग्राम सभी सिद्ध भूमियां हैं । इनमें सबसे ज्यादा भव्य जीव तो राजगृह से मोक्ष पधारे, राजगृही मुनि सुव्रत भगवान की जन्मभूमि है । दिगम्बर परम्परा अंतिम केवली जम्वुरवामी की निर्वाणभूमि मथुरा मानती है । श्वेताम्वर परम्परा उनका स्थान राजगिरि ही मानती है । आचार्य जम्बू स्वामी अंतिम केवली थे जिनकी कृपा से समरत आगम हमें उपलब्ध होते हैं । वह श्रेष्टी. परिवार के कुलदीपक थे । भर चौवन में वैराग्य जागृत हुआ । परिवार वालों ने शतं रखी, तुम्हारी शादी आठ कन्याओं से होगी । अगर तुम उनको जीत सको तो हम तुम्हें साधु वनने की आज्ञा दे देंगे । आचार्य जम्बू स्वामी ने माता पिता की आज्ञा से रम्भा के समान, आट कन्याओं से शादी करवाई । हर पत्नी आट करोड़ का दहेज लेकर आई । रात्रि को आठों पत्नीयों के साथ उनकी धर्मचर्चा होने लगी । वाहर चौर प्रभव ५०० साथियों के साथ चोरी कर रहा था, उसने सारे दहेज की गटड़ियां वांध ली, जव चलने लगे तो जमीन पर पांव जम गये, समझ में कुछ न आया । भीतर देखा कि श्री
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