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- आस्था की ओर बढ़ते कदम कुण्ड पाए गए । इस कारण इस तीर्थ का नाम कुण्डलपुर .. रखा गया ।
जैसा मैंने वैशाली के संदर्भ में लिखा था कि प्रभु महावीर के तीन जन्म स्थान माने जाते हैं, प्रथम वैशाली के करीव कुण्डलपुर, दूत्तरा यह स्थान नालन्दा के पास है, तीसरा लक्ष्छुवाड़ है जिसे श्वेताम्बर परम्परा मानती है ।।
___ संवत १६६४ में यह छोटे-छोटे जैन मन्दिर थे, परन्तु अव तो मात्र दो मन्दिर बचे हैं, एक पुराना मन्दिर, दूसरा नया मन्दिर । नया नन्दिर आनन्द जी कल्याणजी पेढ़ी ने बनाया है । यह शास्त्रीय विधि से पीले पत्थरों से बना है । यह मन्दिर कला का श्रेष्ठतम नमूना है । इस नये मन्दिर में भगवान ऋषभदेव की २००० वर्ष पुरानी प्रतिमा स्थापित की गई है । इस प्रतिमा के माथे पर भगवान ऋषभदेव के की माता मरुदेवी विराजित है । इसके साथ प्रभु की जटा प्रदर्शित की गई है । जैन तीर्थंकरों में प्रथम तीर्थकर भगवान ऋषभदेव के कंधे पर जटा प्रदर्शित की जाती है । यह प्रतिमा भारत में एकमात्र प्राना है । यह प्रतिमा भव्य, सरस एवं चमत्कारी है । यहां पहुंचने वाला हर यात्री इस प्रतिमा को देखकर धन्य हो जाता है । इस नन्दिर में भगवान ऋषभदेव, श्री शांतिनाथ जी, श्री पार्श्वनाथ, श्री अजीतनाथ प्रभु की भव्य प्रतिमाएं विराजित हैं । यह प्रतिमाएं मन्दिर की शान को चार चांद लगा रही हैं । इन प्रतिमा की भव्यता व दिव्यता से यात्री मंत्रमुग्ध हो जाते हैं । पुराना मन्दिर :
यह गणधर गौतन स्वामी का घर माना जाता है । यहां अनेक प्राचीन चरण त्यापित हैं । यह चरण गुरु गौतम के २००० वर्ष पुराने नने जाते हैं । इस पुराने मन्दिर में
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