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- વાગ્યા છા ગોર વઢો હમ पद पर पहुंचकर अहंकार उन्हें छू नहीं पाया था । उन्होंने मामूली सी भूल होने पर, वह श्रावक आनन्द से प्रायश्चित करने उनके घर गये । उनकी प्रेरणा से बच्चे से बूटे तक भिक्षु वनकर केवल ज्ञान प्राप्त किया, मोक्ष पाया । पर गणधर गौतम को महावीर के प्रति असीम मोह के कारण केवलज्ञान नहीं हो रहा था । एक वार भगवतीसूत्र में प्रभु महावीर ने गणधर गौतम के सराग प्रेम की प्रशंसा करते हुए कहा कि "हम और तुम अनेकों जन्मों तक रहते चले आ रहे हैं, हमारा स्नेह जन्म जन्म का है । तुम घबराओ मत, हम दोनों मोक्ष प्राप्त करेंगे । तुम धर्म कार्य में प्रभाट नत करो ।'
प्रभु महावीर के कई वार समझाने पर भी गणधर गौतम का प्रभु महावीर के प्रति स्नेह बढ़ता गया । आखिर प्रभु महावीर का निर्वाण समय करीब आया । तो उन्होंने अपने प्रिय शिष्य गौतम को प्रतिवोध देने हेतु दूसरे गांव भेजा । पीछे प्रभु महावीर का निर्वाण हो गया । यही निर्माण दिवस गणधर गौतम के केवलज्ञान का दिवस वना, यह दीवाली का दिन था । ऐसा शिष्य विश्व के मानचित्र पर कहां मिलता है जो अपने गुरु के प्रति समर्पित होकर धन्य हो गया । प्रभु महावीर इस नगर में अनेकों वार पधारे, ऐसी मान्यता है । यहां मूल नायक भगवान ऋषभदेव का मन्दिर
कुण्डलपुर :
दिगम्बर जैन परम्परा इसी स्थान को प्रभु महावीर की जन्मभूमि मानती है । कई विद्वान गोवर व कुण्डलपुर को एक ही मानते हैं । कई लोगों की मान्यता है कि प्रभु महावीर ने इस ग्राम की परिक्रमा की थी । परिक्रमा के समय अनेक
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