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- आस्था की ओर बढ़ते कदम हमें नालंदा की यात्रा सम्पन्न की और आगे बढ़े । गौतम स्वामी की जन्मभूमि गोबरग्राम कुण्डलपुर
नालंदा भगवान महावीर व भगवान पार्श्वनाथ के शिष्यों की मिलना स्थली रहा है । यहां चर्तुयाम व पांच महाव्रतों के उपासकों की एक चर्चा हुई थी । नालंदा में शाम हो गई थी । कुछ ही दूरी पर भगवान महावीर के तीन गणधरों की इन्द्रभूति वायुभूति, अग्निभूति की जन्मभूमि थीं । यह तीनों सगे भाई थे । वेदों के प्रकाण्ड पण्डित थे । उनका गोत्र गौतम था, सैकड़ों शिष्य इनसे विद्या अर्जित करते थे । एक मुहल्ले में हमारी गाड़ी रुकी । पीले रंग की एक भव्य इमारत थी । पता चला इसी साल सारी इमारत का जीर्णद्वार हो रहा था ।
यहां के पण्डितों ने बताया कि इस गांव के ब्राह्मण गणधर गौतम के वंशज हैं! गणधर गौतम प्रभु महावीर से आट वर्ष बड़े थे । वह चार ज्ञान के धारक थे । वह चौदह हजार शिष्यों में प्रमुख थे ! जैन समाज में भगवान महावीर के बाद गणधर गौतम को नांगलिक माना जाता है । हर जैन कहता है :
___ मंगलं भगवान वीरो, मंगलं गौतम गणी ___ मंगलं स्थूल भद्रदायो श्री जैन धर्मस्तु मंगलं इसी तरह जैन दिगम्बर परम्परा में कहा जाता है
मंगलं भगवान वीरो, मंगलं गौतम गुरु . मंगलं कुन्दकुन्दाद्यो, श्री जैन धर्मस्तु मंगलं
श्वेताम्वर परम्परा में और कहा जाता है ___ अंगूठे अमृत वले, लब्धि तणा भण्डार श्री गुरु गौतम सिमरिचे मन वांछे फल दातार ।
गणधर गौतम जैन परम्परा में पूज्नीय है । उन जैसा ज्ञानवान विनयी संसार में ढूंढने से नहीं मिलता । इतने बड़े
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