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= aણ્યા શી વોર વઢશે દમ दिगम्बर हैं । हमें एक स्थान दिखाया गया जहां अकलंक व निष्कलंक नाम के दिगम्बर जैन मुनियों को बौद्धों ने गिरा दिया था । इस घटना के फलस्वरूप अकलंक मुनि मारा गया । दूसरे निष्कलंक मुनि वच गये। इसे मारने का कारण इन मुनियों द्वारा वौद्ध भेष धारण कर, वौद्ध साहित्य का ज्ञान अर्जित करना था । यह भव्य विश्वविद्यालय था । जहां १०,००० से ज्यादा विद्यार्थी संसार के कोने कोने से ज्ञान अर्जित करने आते थे । यहां उनके होस्टलों (कमरों) के खण्डहर थे, यहां रसोई घर थे। एक भव्य पुस्तकालय था, जिसे वहलोल लोधी ने जला दिया था, वहलोल लोधी ने बहुत से भिक्षुओं को मार दिया, प्रतिमाएं तोड़ डाली, अभी तो चार कि.मी. में विश्वविद्यालय के खण्डहर दिखाई देते हैं पर अभी यहां खुदाई होनी वाकी है, यह खुदाई अंग्रेजों ने की थी, यह कार्य आगे नहीं बढ़ा ।
यह बौद्ध साहित्य के अध्ययन के लिये पालीशोध संस्थान भारत सरकार द्वारा स्थापित है । इस स्थान से प्राप्त महात्मा बुद्ध की प्रतिमाएं सुरक्षित की रखी गई हैं, इसके प्रांगण में कुछ जैन प्रतिमाएं भी हैं । पर यह प्रतिमाएं कहां से मिली हैं, इसका उल्लेख नहीं । वौद्ध ग्रन्थों का विशाल भंडार है । ताड़पत्र व हस्तलिखित गन्थों का अच्छा संग्रह है । देश-विदेश से जिज्ञासु यहां ज्ञान अर्जित करने आते हैं । देश-विदेश के यात्री नालंदा विश्वविद्यालय की यात्रा पर भारतीय प्राचीन संस्कृति से अवगत होते हैं । विद्यालय के वाहर एक विशाल वौद्ध प्रतिमा स्थापित है । जिसे स्थानीय लोग पूजते हैं । इस विशाल विद्यालय को देखने के लिये पयाप्त समय की आवश्यकता है । यह कुछ घण्टों का काम नहीं, पर जव समयाभाव हो, और यात्रा कई दिन की हो तो रास्ते में रुकना मुश्किल होता है ।
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