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- आस्था की ओर बढ़ते कदम राजगिरि को अलविदा :
तीन पर्वतों की चढ़ाई में हमारे पांव जवाब दे चुके थे, फिर शाम हो चुकी थी। बिहार का इलाका था । हम उसी दिन पावापुरी से रवाना होने का मन बनाया । गुरुदेव उपाध्याय श्री अमरमुनि जी म० के दर्शन किये । आगामी यात्रा के लिये आशीर्वाद लिया, मंगल पाठ सुना । फिर वीरायतन और पांचों पहाड़ों को प्रणाम किया। यह भूमि प्रभु महावीर को भूमि है, यहां कोई जीवन भर भी रहता रहे, कभी उकता नहीं सकता । पर जीवन का नाम ही यात्रा है, सो गुरुदेव की आज्ञा लेकर प्रस्थान किया ।
. वीरायतन से तांगा लिया । बस स्टैंड पर बस का ठीक समय नहीं था, अब दो विकल्प बचे थे । एक तो हम राजगिर के मन्दिरों में रहते, दूसरा टैक्सी लेकर पावापुरी पहुंचे । हमने पुनः दोनों मन्दिरों में तीर्थकर प्रभु को प्रणाम किया । कुछ खरीदने योग्य वस्तुएं खरीदीं । वहां की मिट्टी को मस्तक पर लगाया, वैशाली, पटना, राजगिरी के पत्थरों को इकट्ठा कर लिया, यही हमारी यात्रा की निशानियां थीं, कुछ पुस्तकें, चित्र व मूर्तियां खरीदीं, कुछ ऑडियो कैसेट भी खरीदे, उन दिनों वीडियो का रिवाज नहीं था, ऑडियो का रिवाज था । यह सब तरलता से आती थी । हमने टैक्सी से आगे की यात्रा जारी रखने का निश्चय किया । नालंदा में :
___ वहां से टैक्सी में बैठकर हम नालंदा पहुंचे । नालंदा की भारतीय साहित्य में अपनी पहचान है । इसकी प्रसिद्धि नालंदा विश्वविद्यालय के खण्डहरों के कारण है । इस विश्वविद्यालय के खण्डहर काफी इलाके में बिखरे पड़े हैं । कई प्रतिमाएं तो जैन तीर्थकरों की लगती है, क्योंकि वह
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