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या की ओर बढ़ते कद. मन्दिर के रूप में स्थापित हैं । मन्दिर में जापानी भिक्षु नगाड़े वजाते रहते हैं । जपानी, सिंघली नि विपुल मात्रा में एक मट में यहां रहते हैं । मन्दिर में घी में दीपक जल रहे थे, प्रतिमाएं स्वर्णिम थी ।
इस पहाड़ी के नीचे के एक भर में श्री उत्तराध्ययन सूत्र में बताया कि मंडीकुक्षी चैत्य था, जहां अनाथीमुनि व सम्राट श्रेणिक की भेंट हुई थी । यह बात हमें कवि जी ने वताई थी । हम कुछ जल्दी में थे, ही यात्रा वहुत लम्बी थी । फिर अभी राजगिर के वाकी पड़ों का वन्दन करना शेप था, यहीं पहाड़ों पर अनेकों मुन्चेि ने तप द्वारा मोक्ष प्राप्त किया था । उदयगिरि :
__ इस पर्वत की ७८२ सीढ़ियां हैं । यहां सांवलिया भगवान पाश्वनाथ की प्रतिमा है । यह ही एक मात्र मन्दिर है, पर यहां बहुत से यात्री वन्दन करने को आते हैं। मृलनायक की प्रतिमा नीचे तलहटी में गांव के मन्दिर में विराजमान है । पहाड़ तो पहाड़ है यह यात्रा थकाने वाले थी । यह पहाड़ अपनी इतिहासिक महानता लिये हुए हैं । स्वर्णगिरि :
इसे जनभाषा में सोनगिर कहते हैं । इस पहाड़ का यात्रा की दृष्टि से बहुत गहरा महत्व है । इस पर्वत पर चढ़ने के लिये १०६४ सीढ़ियां चढन पड़ती हैं । इतनी सीढ़ियां चढ़ने के वाद २ मन्दिरों का परिसर आता है । जह हमें प्रथम तीथंकर परमात्मा ऋषभदेद व अंतिम तीथंकर महावीर स्वामी के चरणों को वन्दन करने का अवसर मिला ।
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