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आस्था की ओर बढ़ते कदम
इसी प्रकार के समोसरण से सुसज्जित प्रभु महावीर पावापुरी में पधारे । इस नगरी को मध्य पावा भी कहते हैं । इसके इलावा दो पावा और थी एक थी मल्लों की पावा, दूसरी भंगी देश की पावा । यह पावा इन दोनों के बीच पड़ती हैं । श्वेताम्वर व दिगम्बर दोनों परम्परा प्रभु महावीर का निर्वाण स्थान मानती हैं । यहां ही प्रभु महावीर ने अपनी प्रथम देशना दी थी ।
गणधरों की
गौतम इन्द्रभूमि व अन्य धर्म चर्चा :
श्वेताम्बर मान्यता के अनुसार जिस समय श्रमण भगवान महावीर इस नगरी में पधारे तो आसमान देव विमानों से भर गया । उस समय वहां एक सोमिल नाम का ब्राह्मण रहता था, उसने एक विशाल यज्ञ का आयोजन किया, जिसमें उस समय के प्रसिद्ध १९ ब्राह्मण अपने हजारों शिष्य सहित यज्ञ कर रहे थे । यह यज्ञ महीनों से चल रहा था, इसमें देवों का आहवान किया था, पशु बलि दी जाती । इस यज्ञ को सम्पूर्ण करने की जिम्मेदारी प्रसिद्ध विद्वान गौतन इन्द्रभूति के कन्धों पर थी । इन्द्रभूति वेद, वेदांग, ज्योतिष, इतिहास, कोष, व्याकरण व पुराण का प्रसिद्ध विद्वान थे ।
भगवान महावीर का समोसरण लगा । देव, मनुष्य व पशु-पक्षी प्रभु महावीर की वाणी सुनने आने लगे । सारी धरती पर मंगल छा गया । देवताओं के विमान यज्ञ भूमि की और बढ़ रहे थे । इन्द्रभूति को यह दृश्य देखकर बहुत प्रसन्नता हुई। उसने अपने साथियों से कहा, "देखो ! मेरे यज्ञ के प्रभाव से खींचे देव धरती पर आने को मजबूर हो रहे हैं ।"
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