________________
आस्था की ओर बढ़ते कदम
के दर्शन का सौभाग्य प्राप्त हुआ । इसी इतिहासिक भूमि पर मेरा सम्मान हुआ । मैं अपने को इस योग्य नहीं समझता क्योंकि मेरे धर्मभता के श्री रवीन्द्र जैन के विना यह सम्मान अधूरा है । पर सभी लोग हम दोनों में कोई अन्तर नहीं समझते । मुझे बड़ा व गुरु मानकर सम्मानित करते हैं । इससे हम दोनों को कोई अन्तर नहीं पड़ता । इस वहाने समाज हमारे धार्मिक काम का मूल्यांकन करता है । इन सम्मानों यही लाभ है ।
वीरावतन के प्रांगण में एक दिन और रुके । इसका प्रमुख कारण राजगिर में वाकी बचे ३ पहाड़ों को यात्रा थी । शाम को प्रतिक्रमण के वाद उपाध्याय श्री अमरमुनि जी से साक्षात्कार करने का अवसर मिला, वहुत ही मधुर मिलन था । इनसे हमारी अंतिम भेंट थी । इतनी वृद्धावस्था में भी उनकी प्रवचन शैली कमाल की थी । वह कवि भी थे, वह पहले मुनि थे, जिन्होंने जैनधर्म के प्रचार के लिये वाहन प्रयोग का समर्थन किया । जैन समाज में वहनधारी मुनि श्री सुशील कुमार जी म० व सन्मति संघ आचार्य मुनि श्री विमल कुमार जी म० को सन्मति संघ का आचार्य पद प्रदान किया । जैन समाज में साध्वी को आचार्य पद देने की प्रथा नहीं थी । इस महान क्रांतिकारी चिन्तक ने साध्वी चन्दना को आचार्य पद देकर स्त्री जाति को सम्मानित किया । उपाध्याय श्री का कथन है "जव स्त्री तीर्थकर उन की लोगों को प्रतिवोध दे सकती है, तो आचार्य पद ग्रहण क्यों नहीं करा सकती । यह सव भगवान महावीर के बाद हुए आचार्यों की व्यवरथा है, भगवान तीर्थकर परम्प मैं स्त्री पुरुष में कोई अंतर नहीं रखा है, स्त्री मोक्ष प्राप्त कर सकती है तो आचार्य-उपाध्याय क्यों नहीं ?" इस रात्रि को कुछ थकावट नहीं हुई। हम सोये, फिर स्वभाव के कारण शीघ्र उठे । फिर
325