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- आस्था की ओर बढ़ते कदम किया । १६७२ से इन्होंने मेरे आगरा में दर्शन किये थे । इतने अंतराल के बाद अब इन्होंने काफी विकास किया है । इनकी गुरुणी प्रेरिका उपप्रवर्तिनी साध्वी स्वर्णकान्ता जी म० को मैं मुबारकवाद देता हूं, इन्हें आशीर्वाद देता हूं, मैं अपनी
ओर से भाई पुरुषोतम जैन को श्रावक शिरोमणि पद से विभूषित करता हूं । यह सम्मान उन्हें पंजावी जैन साहित्य के प्रति सेवाओं के लिये है ।
उपाध्याय श्री अमरमुनि जी म० ने मुझे अलंकरण का प्रतीक शाल ओढ़ाया । यह समारोह सादा व पारिवारिक था । कविजी के बहुत थोड़े से इशारे पर यह प्रोग्राम हुआ । उपाध्याय श्री अमरमुनि जी म० के अतिरिक्त अन्य विशिष्ट अतिथियों को पंजावी साहित्य भेंट किया गया, पर इस समारोह में कोई पंजावी न था । पर इन लोगों के मन में पंजाबी भाषा में प्रकाशित जैन साहित्य को देखकर हार्दिक प्रसन्नता हुई । इनके एक अधिकारी ने सुझाव रखा क्यों न गुरुदेव उपाध्याय श्री अमरमुनि जी म० के सारे साहित्य का पंजावी अनुवाद किया जाए, इसके लिये दोनों विद्वानों की सहायता ली जाये ।
इसके उत्तर में मैंने कहा कि हमें गुरुदेव के साहित्य का पंजावी अनुवाद करने का कोई इतराज नहीं, हमारे लिये यह गौरव का विषय है कि हम भगवान महावीर की भूमि पर, प्रभु महावीर के एक भिक्षु की रचना का पंजावी अनुवाद करेंगे। यह तो हमारा सौभाग्य होगा, पर इसके प्रकाशन की व्यवस्था वीरायतन को करनी होगी । हम कोई परिश्रमक नहीं लेंगे । आप कोई भी पुस्तक वताएं, जिसका पंजाबी अनुवाद जनसाधारण के लिये उपयोगी हो ।'
हमें इस समारोह कई लाभ हुए । एक तो तीर्थदर्शन, दूसरा सौ पुस्तकों के लेखक उपाध्याय श्री अमरमुनि जी म०
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