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-आस्था की ओर बढ़ते कदम तीनों के उल्लेख में आगम भरे पड़े हैं । वीरायतन के शांत परिसर में वाह्मी कला मन्दिर है । एक वार तो हम इन पैनलों को देखकर जैन श्राविकों, राजाओं और तीर्थकरों के जीवन से परिचय होते हैं । इनके माध्यम से हम इतिहास की गलियों में मस्त होकर घूम सकते हैं ।
यह कला मन्दिर प्रथम तीर्थकर भगवान ऋषभदेव की सुपुत्री ब्राह्मी सुन्दरी को समर्पित है । यह ब्राह्मी साध्वी जिसने प्रभु ऋषभदेव से ब्राह्मी लिपि सीखी थी । उसे प्रभु ऋषभ की प्रथम साध्वी वनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ । उनकी एक वहिन सुन्दरी थी जो गणित की जन्मदाता थी । दोनों बहिनों ने अपने पिता ऋषभदेव से साध्वी जीवन ग्रहण किया था । इन साध्वियों ने वाहुवली प्रतिवोध दिया था । ऐसी साध्वी को समर्पित यह ब्राह्मी कला मन्दिर, जैन कला व इतिहास का संजीव चित्रण है । खाना खाकर कुछ विश्राम किया । यह स्थल पर मन खूब लगता है । थकान का नाम नहीं रहता । एक वात और उल्लेखनीय है कि विहार के पशु दूध के मामले में कमजोर है । विहार में गरीवी बहुत है । साधारण बिहारी खाली रहता है । गले में ट्रांजिस्टर, हाथ में छतरी लिये विहारी हर स्थान पर घूमते है। स्त्रियां खूब काम करती है । हम राजगिर के बाजार में घूमने निकले रास्ते में हमें स्थान-स्थान पर बौद्ध भिक्षुओं से भेंट होती रही । हमें एक दौद्ध भिक्षुणी श्रीलंका की मिली । जिससे मेरे भ्राता रवीन्द्र जैन ने धर्म चर्चा की ।
राजगिर में अजातशत्रु का दुर्ग भी है । यहां ब्रह्मा, जापानी बौद्धों के मन्दिर दर्शनीय हैं, जापान के बौद्धों ने रत्नगिरि पहाड़ की चोटी पर शांति स्तूप की स्थापना की है । हम इन सव स्थानों को देखना चाहते थे पर समयाभाव के कारण उन्हीं स्थानों को देखा जो वीरायतन के करीव
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