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- आस्था की ओर बढ़ते कदग पड़ते थे । दोपहर के २.३५ के करीब हमने इस पहाड़ पर चढ़ने की योजना बनाई क्योंकि समारोह ३ बजे के बाद था । विपूलाचल पर्वत :
यह पहाड़ दिगाम्वर परम्परा में बहुत महानता रखता है । दिगम्बर परम्परा यह मानती है कि प्रभु महावीर ने अपना प्रधन उपदेश यहीं दिया था । इस पर्वत की ५५५ सीढ़ियां हैं, सीधी चढ़ाई है । आधे रास्ते में एक प्राचीन चरणपादुका मन्दिर है । कुछ दूर चढ़ाई पर पहाड़ के ऊपर की तलहटी आती है । यहां भी एक चाय की दुकान मिली, पांव जवाब दे चुके थे, फिर भी प्रभु ममत्व के कारण आगे बढ़ रहे थे। इस पर्वत पर मुनि सुव्रत स्वामी का मन्दिर व अन्य जिनालय हैं । इनमें प्रभु महावीर, चन्दाप्रभु तथा ऋषभदेव की चरण पादुकाएं उललेखनीय हैं । यह पर्वत पर विराजित चरण बहुत प्राचीन हैं । प्रतिमाएं किसी मन्दिर से लाकर स्थापित की गई हैं ।
यहां सबसे उल्लेखनीय मन्दिर समोसरण मन्दिर है । जो दिगम्बर जैन समाज ने शांति स्तूप की तरह बनाया है । इस मन्दिर का निर्माण भगवान महावीर से २५००वें निर्वाण महोत्सव पर हुआ था । मन्दिर के अन्दर कोई प्रतिमा नहीं । मन्दिर का आकार समोसरण का है । समोसरण में प्रभु का मुख चारों ओर दिखाई देता है। यहां की प्रतिमाएं शांति स्तूप की भांति सुनहरी हैं । पर्वत से नीचे उतरे । तीन बजे हमारा वीरायतन में प्रोग्राम था । वीरायतन में ठहरे समस्त यात्री उस कार्यक्रम में सम्मिलित हुए । श्रावक शिरोमणि पद अलंकरण वीरायतन में रोजाना समारोह होते रहते हैं । यहां
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