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- स्था की ओर बढ़ते कदम आंसूओं का कारण पूछा । पत्नी ने कहा, मेरा अकेला भाई साधु वनने जा रहा है, वह एक-एक पत्नी रोजाना छोड़ रहा
धन्ना ने कहा, “सेठानी ! तुम्हारा भाई बुजदिल है, यह कोई त्याग है ? यह तो त्याग का मजाक है, अगर छोड़ना है तो सारी पत्नियों को एक साथ क्यों नहीं छोड़ देता ?"
सेटानी ने कहा, “पतिदेव ! कहना सरल है, पर संयम व त्याग पर चलना कठिन है । अगर आप एक पत्नी को त्याग नहीं सकते तो जिसकी ३२ पत्नीयां हैं वह कैसे त्यागेगा
पत्नी की बात सुनकर धन्ना का आत्मदेव जागा, उसने वलपूर्वक कहा, “आज से मैं आप सभी का त्याग करता हूं।" इतना कहकर वह घर से अपने ससुराल घर में आया । शालिभद्र को ललकारते हुए कहा, "तू कायरों की भांति एक-एक पत्नी को छोड़ने का दम्भ क्यों भन्ता है, छोड़ना है तो सवको एक साथ छोड़ो जैसे मैंने छोड़ा है।
शालिभद्र की आत्मा जागृत हुई । शालिभद्र व उसकी माता व ३२ पत्नियों ने गृह-त्याग संयम का मार्ग ग्रहण किया । धन्ना ने सपरिवार दीक्षा ग्रहण की । उनकी स्मृति को समर्पित यह जैन मन्दिर है । जो इस पर्वत पर शान से खड़ा है। यह मन्दिर मणिकार मठ के पास है । भारत में ऐसा अकेला जैन मन्दिर है जहां दोनों जीजा-साला की गृहस्थ अवस्था में प्रतिमाएं हैं । वापिस उतरते ही हमने वह स्थान भी देखा जहां उपाध्याय श्री अमरमुनि जी ने प्रवास किया था, सप्तवर्णी गुफा देखी, जहां कभी रोहिणी चोर ने लोगों को आतंकित किया था, इस चोर को मंत्री अभयकुमार ने अपनी चतुराई से पकड़ा था । पहाड़ के नीचे उतरे हमें यह बताया गया कि यह गुफा अन्दर से काफी लम्बी है ।
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