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- आस्था की ओर बढ़ते कदम वढ़े । वहां पूजा की । यहां अधिकांश तीर्थकरों के चरण हैं । फिर इसी पहाड़ के ऊपर १ किलोमीटर सीधी चढ़ाई चढ़नी पड़ती है । वहां एक वृक्ष के पीछे ११ गणधरों के चरण चिन्ह हैं । यह माना जाता है कि इस पहाड़ पर गणधरों का निर्माण हुआ था ।
फिर हम वापसी उतरे । पहाड़ में एक मार्ग अलग आता है उस मार्ग के रास्ते में एक रवीं सदी के मन्दिर के खण्डहर देखे । इसमें २४ तीर्थकरों की प्रतिमाओं के दर्शन होते हैं पर यह मन्दिर सरकारी स्मारक है । यह कभी प्राचीन तीर्थस्थल का मुख्य केन्द्र रहा होगा । इसके आगे इसी काल का शिव मन्दिर भी इतना प्राचीन ही है । यह मन्दिर सुरक्षित है । यहां रात्रि दर्शन व पूजा करते हैं । मैं भी यहां दर्शनार्थ गया । इस स्थान के विल्कुल सामने चोटी पर धन्ना शालिभद्र का मन्दिर है । यह भारतवर्ष का अपने ढंग का अकेला मन्दिर है । धन्ना शालिभद्र की कहानी में हम बता चुके हैं कि शालिभद्र कितना वैभव सम्पन्न था कि राजा श्रेणिक तक नहीं जानता था । जव श्रेणिक की रानी चेलना ने रत्न कम्वल की जिद्द की तो पहले अपना दाम सुनकर वह चुप हो गया, पर रानी के त्रिया हट के आगे झुकना पड़ा । व्यापारियों की तलाश की, व्यापारीयों का दल मिला । उन व्यापारियों ने कहा, “महाराज ! आपके शहर की एक ही महिला ने हमारे सारे कम्बल खरीद लिये हैं । उसने हमें यह भी कहा है कि मेरी ३२ बहुएं हैं पर कम्बल १६ हैं । उसने तो इन कम्बलों को पैर पोंछने के लिये अपनी पुत्रवधु को दे दिया है ।"
राजा श्रेणिक शालिभद्र की सम्पन्नता से हैरान हो गया । वह शालिभद्र की माता भद्रा सेठानी को मिलने आवा । सात मंजिला महल था । शालिभद्र की माता सारा
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