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- आस्था की ओर बढ़ते कदम स्नान करते हैं । मुस्लमान व इसाई तक आते हैं । यह प्रकृति का चमत्कार है । स्नान के बाद गुरुदेव राष्ट्रसंत उपाध्याय श्री अमरमुनि जी म० के दर्शन किये । उन्हें अपना कार्यक्रम बताया । उपाध्याय श्री जी से हम १९७२ से परिचित थे । उनसे पत्र-व्यवहार बना हुआ था । उनकी पत्रिका श्री अमर भारती से हम जुड़े हुए थे । वीरायतन तें विश्व भर के लोग आते हैं, कविजी वृद्ध अवस्था में भी शास्त्रों को स्वाध्याय कराते रहे ।
उपाध्याय श्री के शिष्यों ने हमें यात्रा में भरपूर सहयोग दिया । उनके प्रवचन नहीं सुन सके क्योंकि सुबह ही हम पहले पहाड़ वैभवगिरि की यात्रा को चल पड़े । वैभारगिरि :.
__इस पहाड़ के शुरु में ही दौद्ध संगीती चबूतरा है, जहां इस बारे में सूचना पटिका लगी है । इस पहाड़ की ५३१ सीढ़ियां हैं । यह सीढ़ियां बहुत थकान वाली हैं । यहां पर पांच मन्दिर हैं जिनमें भगवान नहावीर स्वामी, भगवान मुनि सुव्रत स्वामी, श्री धन्ना शालिभद्र तथा गणधर गौतम स्वामी की प्रतिमायें व चरण हैं । इसी पर्वत पर रवीं सदी के प्राचीनतम जैन मन्दिर की प्रतिमाएं हैं । मन्दिर की इमारत गिर चुकी है । सप्तपर्णी गुफा इसी पर्वत पर है, जहां १९६२ में उपाध्यायश्री अमरमुनि जी ने चतुर्मास किया था । वैभारगिरि पर्वत हरा-भरा पहाड़ है, भूमि पथरीली है। पशु चरने के लिये इन पहाड़ों पर उगी हुई घास से अपना पेट भरते हैं । इस पर्वत की दो चढ़ाईयां हैं, पहली चढ़ाई चढ़ने के बाद पहले श्वेताम्बर मन्दिरों के दर्शन होते हैं । मन्दिर तो बाद का बना हुआ है, परन्तु इसमें विराजमान प्रतिमाएं बहुत प्राचीन हैं । यही मन्दिर के पुजारी ने हमें पूजा का लाभ प्रदान किया। फिर हम दिगम्बर जैन मन्दिरों की ओर
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