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= aહ્યા છી વોર વઢલે દમ टीक तरह से नहीं समझ रहा मैं इसे स्पष्ट रूप से बताता __ हूं, “हे मुनि ! मैं मगध देश का सम्राट श्रेणिक हूं, यह महल,
हाथी, घोड़े, कोष, सेना सव मेरा है । मैं तुम्हें निमन्त्रण देता हूं कि इस मुनि वेष को छोड़कर मेरे महलों में राजकुमार सा जीवन व्यतीत करो, तुम्हें कोई कष्ट नहीं होगा, मैं तुम्हारा नाथ हूं, तुम्हारे खाने-पीने व भोग-विलास के दिन हैं । संसार के भोग भोगने के वाद साधु बन जाना ।" अनाथी मुनि का उत्तर
राजा श्रेणिक की बात सुनकर अनाथी मुनि ने कहा, "राजन् ! जिसे तुम नाथ वनना कहते हो, यह तुम्हारी भूल है । इस प्रकार की विभूति तो मेरे पास भी थी, पर इसमें तुम्हारा क्या है ? वास्तव में यह भौतिक सोच ही तुम्हें अनाथ वना रही है। राजन् मैं तुम्हें अपनी कथा सुनाता हूं. इसे ध्यान से सुनो । कोशाम्बी नगरी के सेट का मैं पुत्र _ था । मेरे पास अथाह सम्पदा थी । शायद किसी राजा से बढ़कर मेरी धन-सम्पदा थी, मैं उनका इकलौता पुत्र होने के कारण उस सम्पति का स्वामी था । मेरे माता-पिता मुझे वहुत चाहते थे, वह मेरे पर हर चीज लुटाते थे । मेरी पत्नी सुन्दर थी, जो मेरे प्रति पूरी तरह समर्पित थी । मेरी जीवन यात्रा संसार के भोग भोगते हुए चल रही थी । मुझे किसी प्रकार का भय नहीं था । मैं रमृद्धिशाली जीवन जी रहा था । मेरी प्रतिष्टा नगर में चारों ओर थी । मैं गरीवों के संरक्षक के रूप में जाना जाता था । एक वार अशुभ कर्मोदय से मेरी आंखों में भयंकर रोग उत्पन्न हो गया । यंत्र, मंत्र, तंत्र तथा औषधि से हर प्रकार से मेरा ईलाज करवाया गया । पर ज्यों-ज्यों मेरा उपचार होता गया, मेरा रोग वढ़ता गया । सव लोग मेरा ध्यान रखते । मेरी माता दिन रात मेरा ध्यान रखती । मेरे पिता ने अपना धन पानी
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