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-आस्था की ओर बढ़ते कदम कारण बनता है । लोगों ने तो कहावत बना रखी है :
"नार मुई, सव सम्पति नासी, मुंड मुंडाये, भये सन्यासी !" ___ स्त्री मर गई, सम्पति का नाश हो गया । दोनों तरफ से चोट पड़ी फिर सिर मुंडाया और सन्यासी बन गये । लोगों की सोच मुनि जीवन के बारे में इतनी निम्न स्तर की है । . मुनि ने कहा, “राजन् ! मैं अनाथ था, इसलिये साधु वन गया ।" राजा ने सोचा इसको मेरी बात ठीक ढंग से समझ नहीं आ रही है । इसे शायद यह पता नहीं कि मैं कितना बड़ा सम्राट हूं, कितने राजा मेरे अधीन हैं, कितनी विशाल मेरी सेना है, कितना बड़ा कोष है । हर प्रकार से मैं सम्पन्न हूं, मैं क्यों न इस मुनि का नाथ वनूं ?
राजा श्रेणिक ने प्रत्यक्ष रूप से कहा, "मुनि ! अगर तुम्हारा कोई नाथ नहीं तो कोई बात नहीं, मैं तुम्हारा नाथ वनता हूं ।”
राजा श्रेणिक की बात सुनकर मुनि को राजा की अज्ञानंता पर तरस आया, पर उन्होंने स्पष्ट कहा, "राजन् ! तू तो स्वयं अनाथ है, तू मेरा नाथ कैसे बनेगा?" सामने राजा श्रेणिक है, जानते भी हैं, राजा सामने खड़ा है ऐसी स्थिति को जानकर राजा को अनाथ कहना मुनि के अभयता का:प्रतीक है ।
इतनी बात सुनकर राजा अवाक रह गया । उसने पहले कभी ऐसा नहीं सुना था । इतिहास के ये बोल ऐसे हैं कि जो अपने आप में महत्व रखते हैं । कभी किसी राजा को कोई भिक्षु कहे कि तू स्वयं अनाथ है, मेरा नाथ कैसे बनेगा ? यह मुनि की स्पष्ट भाषा है ये घोष के माध्यम से मुनि ने राजा को सच्ची बात बता दी। राजा श्रेणिक ने सोचा कि यह मुनि अभी भी मेरी बात
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