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- आस्था की ओर बढ़ते कदम प्राचीन जैन मन्दिर में गये । दोमंजिले इस मन्दिर में विभिन्न तीर्थकरों की भव्य व विशाल श्याम वर्णीय प्रतिमाएं हैं । उस समय मन्दिर में आरती चल रही थी । यह श्वेताम्बर परम्परा का काफी प्राचीन मन्दिर है । यहां प्रतिमाएं भव्य, विशाल व काले पत्थर की हैं । यह जैन मन्दिर जैनधर्म का इतिहासिक मन्दिर है । इसी के भव्य परिसर में १६६६ को सिक्खों के दशम् गुरु श्री गुरु गोविन्द सिंह का जन्म हुआ था । यह घटना जैनों व शिक्खों के रिश्तों पर प्रकाश डालती है । यह मन्दिर सेट की हवेली का भाग था । अव उस हवेली के मध्य में दीवार वना दी गई है । इस मन्दिर के जिस भाग में वें गुरु श्री तेग वहादुर जी सपरिवार ठहरे थे, वहीं गुरु गोविन्द सिंह जी का जन्म स्थान है । १९८० तक इस मन्दिर व गुरुद्वारे का रास्ता तक एक था । अव दीवार चाहे वन गई है, पर मन में कोई दीवार नहीं । मन्दिर व गुरुद्वारा आपसी प्रेम की उदाहरण है । कुछ सामाजिक व्यवस्था को ध्यान में रखकर इसका निर्माण किया गया है । हर धर्म को अपनी अलग पहचान रखनी पड़ती है, इस दृष्टि से गुरुद्वारा व मन्दिर एक परिसर होते हुए एक भेद, रेखा खींची गई है ।
हम लोगों ने प्रतिमाओं को श्रद्धा से निहारा, फिर प्रभु की पूजा विधि व श्रद्धा सहित की । इस प्रकार की भव्य प्रतिमाओं वाला परिसर कम ही दिखाई देता है । मन्दिर के वाद हम गुरुद्वारे के विभिन्न परिसरों के दर्शन किये । वहां के एक पंजावी युवक ने हमें पंजाव का जानकर बहुत सम्मान दिया । उन्होंने गुरुद्वारे की प्राचीनता वताते हुए कहा है कि गुरु तेग बहादुर जव धर्म प्रचार हेतू, विहार, बंगाल व आसाम हेतू जा रहे थे तो गुरु पत्नी गर्भवती थी । उन्होंने इसी धर्मशाला में सेट जी की देखरेख सानिध्य में माता को
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