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= an ol ગોર હો ૮મ देखरेख करते हैं । लोग बहुत पछड़े हुए हैं, लोगों का खानपान भी शुद्ध नहीं, पर तीर्थ कमेटियों की व्यवस्था से यात्रियों को कोई दिक्कत नहीं आती । वैसे भी हर तीर्थ पर बहुत सारी धर्मशाला व भोजनशालाएं यात्रियों में कठिनाईयों . को दूर करती हैं । इस सदीयों में जैन एकता के कारण हम पटना शहर में संख्या निरन्तर बढ़ रही है। मैंने वर्तमान पटना शहर की स्थिति का एक यात्री के नाते विवेचन किया है । हम अव स्टेशन से वाहर आ चुके थे । यह नगर वैसा ही था जैसा विहार का आम शहर । मुझे यह पता चला कि बिहार में दो श्रेणी के लोग मिलते हैं धनवान या गरीव । नध्यम श्रेणी यहां नहीं है, खेती न के वरावर है । विहार में कोयला, तांवा, जिरत, अभ्रक भरपूर मात्रा में निकलता है । बिहार के मूल निवासी अभी भी छुआछूत में विश्वास करते हैं । देखा जाये तो विहार में दो धर्म हैं-वेदक और मुस्लिम : कुछ पिछड़ी श्रेणी के लोग ईसाई व दैद हैं । पर जैन धर्म का प्रचार हजारों वर्षों से न होने कारण विहार के मूल निवासी जैन कम मिलते हैं । वहां एक जाति सराक है जो जैन हैं यह जाति विहार, वंगाल, उड़ीसा में मिलती है । इसे जैन धर्म का वचा-खुचा रूप कहा जा सकता है । यह लोग शाकाहारी हैं, प्रभु पार्श्वनाथ के उपासक हैं, खेती से आजीविका चलाते हैं, कई मुनि इस जाति के विकास में लगे
है।
पटना की यात्रा :
पटना शहर के प्राचीन नगरों में कुसुमपुर, पुष्पपुर भी उपलब्ध होते हैं । हम नगर में घूम रहे थे और सोच रहे थे कि यात्रा कहां से शुरु की जाए ? कभी व्ह वैभवपूर्ण नगर था । हमने सर्वप्रथम एक आटोरिक्शा लिया, उसे पटना के इतिहास रथल दिखाने को कहा । सबसे पहले पटना स्थिति
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