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- आस्था की ओर बढ़ते कदम था। उसके बाद आप ने हिन्दी भाषा में एम.ए. की परीक्षा संपूर्ण की। अव घर में मन नहीं लगता था। माता पिता के सारे प्रलोभन आप को संयम मार्ग पर वढने से रोक न सके : आप की दीक्षा १९ फरवरी १९६१ को सफीदोंमण्डी में सम्पन्न हुई। आप के साथ साध्वी श्रुति की दीक्षा सम्पन्न
हुई।
साध्वी बनने के पश्चात आप ने पुनः शिक्ष. ग्रहण करना शुरू कर दिया। आप ने संस्कृत में एम.ए. की. परीक्षा कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से सम्पन्न की। आप समस्त कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में सब से ज्यादा अंक लेने वालं. प्रमुख साध्वी वन गई। आप ने अपनी गुरूणी सुधा जं. महाराज व वड़ी साध्वी स्वर्णा जी महाराज के निर्देश ६ शास्त्रों का स्वध्याय किया। आप ने कई वार वरसी तप किया है। आज कल भी आप ध्यान व तप में लीन रहती हैं। आम ने डा० धर्मचन्द जैन के निर्देशन में पी.एच.डी की परीक्ष. पास की है। इस शोध कार्य की प्रेरणा हम दोनों ने साध्वी श्र. को दी थी। इस से पहले हम ऐसी प्रेरणा (डा०) मुनि शिव कुमार जी महाराज को दे चुके थे। हमें प्रसन्नता है कि मुनि शिव कुमार जी महाराज को बाद में श्रमण संघ ने अपना चर्तुथ पटधर बनाया है। आप श्री की तरह, साध्वी श्री को हमारी सतत प्रेरणा रही कि आप श्रावकाचार के ग्रंध उपासक ५शाग सूत्र पर कार्य करें। साध्वी श्री ने एम.ए. के पश्चात पी.एच.डी. के लिए तैयार नहीं थी। परन्तु हम ने बडे महाराज साध्वी श्री स्वर्णकांता जी को प्रार्थना कर इस की आज्ञा दिला दी। साध्वी श्री को उपासक दशांग सूत्र ते संबंधित काफी साहित्य प्राप्त नहीं होता था। मेरे धर्म भ्राता रविन्द्र जैन ने साध्वी श्री स्मृति को जैन श्रावकाचार साहित्य उपलब्ध करवा दिया। डा० धर्म चन्द जी जैन के कुशल दिशा
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