________________
- स्था की ओर बढ़ते कदग में थामा है। आप ने शिक्षा के क्षेत्र में विद्यार्थीयों को विना भेदभाव से सहायता की है। साध्वी (डा०) स्मृति जी महाराज :
साध्वी स्वर्णकांता जी महाराज की शिष्याओं में सभी साध्वीयां शैक्षिक योग्यताओं की धनी हैं। इन में एक तरूण साध्वी डा. स्मृति जी हैं। जिन्हें स्वयं गुरूणी स्वर्णकांता जी महाराज अपनी शिष्याओं में कोहेनूर हीरा कहती थीं। साध्वी स्मृति जी, साध्वी सुधा जी की शिष्या हैं। आप जन्म अम्बाला के सुश्रावक सेट तरसेम कुमार जैन व माता शशिकांता जैन के यहां १७ मई १६६६ को हुआ। माता पिता के धार्मिक संस्कार आप के जीवन में सहायक बने।
आप को अल्पायु में गुरूणी श्री स्वर्णकांता जी महाराज के दर्शन करने का सौभाग्य मिला। फिर छोटी अवस्था में वैराग्य के बीज पनपने लगे।
आप ने दसवीं की परीक्षा पूज्य कांशी राम जैन सीनीयर सैकण्डरी स्कूल से उतीर्ण की। फिर गुरू चरणों में रह कर स्वाध्याय करना शुरू किया। माता पिता की आप लाडली संतान थीं। घर वाले नहीं चाहते थे कि आप साध्वी जीवन का कठोर मार्ग ग्रहण करें। माता पिता ने आप को वहुत समझाया। साधु जीवन के परिषहों के बारे में समझाया। पर आप पर संयम का मजीटी रंग चढ़ चुका था। आप अपने ईरादे पर दृढ़ रहीं। संसार का वारतिवक स्वरूप आप को समझ आ चुका था। जन्म मरण की लम्बी परम्परा को काटने का निदान संयम है। आप की इच्छा वलवती होती रही। आप ने स्थानीय जैन कालेज से वी.ए. किया। फिर गुरुचरणों में आ गई।
__ मैने आप को पानीपत में वैरागन अवस्था में स्व. भण्डारी पद्म चन्द जी महाराज के चतुर्मास में देखा
... 278